Saturday, October 4, 2008

मुस्कान

मुस्कान


''किसी की मुस्कराहटों पर हो निसार..........किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार .जीना इसी का नाम है '' यह गाने की पंक्ति देती है........एक छोटी सी मुस्कराहट जो जिंदगी में बदलाव लाती है हँसाना,हँसना और मुस्कराना तनाव भरी जिंदगी में बहुत जरुरी है । नही तो जिंदगी अवसाद की हालत तक पहुच जाती हैं क्योंकि जिंदगी है तो मुश्किलें तो होंगी ही क्यों ना इसे मुस्करा कर हल किया जाए । बहुत से ऐसे लोग हैं जिनका सिर झुका हुआ ,मुहं लटका हुआ ,चेहरा खींचा हुआ मानो ख़ुद तो तनाव ग्रस्त होते ही हैं आस पास के माहौल भी बोझिल बना देते हैं । उन्हें देख कर ऐसा लगता है कि दुनिया कि सारी समस्या का बोझ बस उन्ही के सर पर है । हँसी और मुस्कराने से उनका कोई रिश्ता नाता ही नही तो बतायें अब ऐसे लोगो से कौन मिलना चाहेगा । कौन उनसे बात करके अपना मूड ख़राब करेगा । जरूरत है आपका चेहरा यूँ मुसकराता हुआ होना चाहिए कि बस जो आपसे मिले आपको देखे वह आपका ही हो कर रह जाए ।
किसी की बातें अच्छी, मीठी, सकारात्मक हो तो उनसे बात करने को ख़ुद ही जी चाहता है क्योंकि एक मुस्कराहट आपके चेहरे पर एक मुस्कान खिला देती है जिससे दिल खुश हो जाता है और नए ताजे विचार जहन में लिखने के लिए कुलबुलाने लगते हैं । आपकी मुस्कान का स्वास्थ से गहरा सम्बन्ध हैं क्योंकि वैज्ञानिक भी कहते हैं कि अपने खोये हुए स्वास्थ को लौटाने का मूल मन्त्र है खुशी और मुस्कान है । मुस्कराने से दिल मस्तिष्क हमारा श्वसन तंत्र ,पाचन तंत्र सब स्वस्थ और सक्रीय रहते हैं । घर के बुजुर्ग कहते हैं कि हँसते मुस्काराते लोग कभी बीमार नही पड़ते हैं ।क्योंकि उन में रोग से लड़ने की ताकत ज्यादा होती है ।

आपकी एक मुस्कराहट किसी का दिल जीत सकती है ,कोई बिगडा हुआ काम बना सकती है । आपकी एक मुस्कराहट से घर में खुशी का उजाला फैल सकता है । इसलिए आप हमेशा मुस्कुराते हैं और जिंदगी के हसीन पल को बीताते रहें ।

:- Vikash kumar shresth

यह कैसी धारणा है

यह कैसी धारणा है

कुष्ठ रोग को लेकर अनेक सामाजिक भांतियां भारतीय समाज में अब भी मौजुद है और कई लोग अब भी कुष्ठ रोग को एक दैवी अभिशाप मानते हैं । जिसके कारण इसके रोगियों को तिरस्कार झेलना पडता है । दुनिया भर के कुष्ठ रोगियों में 70 प्रसिशत रोगी भारत में रहते हैं । सामाजिक बुराई का एक यह भी नमूना समाज में व्याप्त है जहां कुष्ठ रोगीयों को समाज में रहने नही दिया जाता है और उनके खिलाफ जो भांतियां फैली हुई है कि कोई भी कुष्ठ रोगीयों के साथ रहना नही चाहता यहां तक की उन्हें समाज से निष्कार्षित भी कर दिया जाता है । जिससे उन्हें निर्वासन की जिंदगी जीने के लिए मजबूर किया जाता था । इस बिमारी को दूर करने का तरीका है तो लोगों में जागरूकता लाना , ताकि लोग इनके साथ भेदभाव की भावना ना रखे । इनके ऊपर ऐसी भी कहानियां व्याप्त है कि लोग कुष्ठ रोगियों से इतना डरने लगते है कि उन्हें जिंदा जलाने या जिंदा दफन करने में परहेज नही करते हैं ।

गौरतलब है कि भारत के कई हिस्सों में गलत धारणा के कारण कुष्ठ रोगियों के साथ अभी भी भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जाता है । अधिकांश लोगों का मानना है कि यह बिमारी ठीक नही हो सकती है और इससे दूसरे लोग भी प्रभावित हो सकते हैं । भारत सरकार जहा कुष्ठ रोगियों को न तो छुआछूत और ना ही वंशानुगत मानती है । उनका कहना है कि कुष्ठ रोग संक्रामक है , लेकिन उसका संक्रामक को लेकर आंतक अधिक है , वास्तविक खतरे बहुत कम । यह रोग तब फैल सकता है जब तक इसका इलाज एक बार भी ना हो सका है क्योंकि एक बार इलाज कराने के बाद इस रोग के फैलने का सम्भावना नही होती है । कुष्ठ रोगियों को समाजिक दंस भी झेलना पडता है और उन्हे समाज से निकाल भी दिया जाता है । ऐसा प्रताडना सामाजिक अभीशाप नही तो और क्या हो सकता है ?

देश में दर्जन भर से अधिक कानून बने है वह भी इसे रोक पाने में असमर्थ हैं जिससे भेदभाव की भावना बढ जाती है । बात कानून की हो तो देखा जाए कि भारतीय रेल अधिनियम की धारा 56 में जो प्रावधान है उलके अंर्तगत कुष्ठ रोग ग्रस्त व्यक्ति को रेल यात्रा करने का प्रावधान नही है यहां तक की विवाह अधिनियम में तलाक का भी प्रावधान है । हम यह जानते हुए भी ऐसी गलती करते है जो समाज और देश के लिए सही नही है । समाज के गलत अवधारणा के कारण वे लोग अपनी बस्ती अलग बनाकर रहते है यहां तक कि ऐसे भी कुष्ठ रोगी है जो हजारों की संख्या में सडकों के किनारे अपना जीवन गुजार रहे हैं ।

हम जान कर भी अनजान बने बैठे हैं क्योंकि हमें दुख हो रहा है कि घर परिवार,समाज और सरकार सभी ने इनके साथ सौतेला व्यवहार किया है और इन्हें मिला है तो इनसे सीर्फ दुत्कार जिसका परिणाम आज हम सभी के सामने हैं । हम इनके नाम से करोडों, अरबों रूपए खर्च कर देते हैं फिर भी इन्हें सडक के किनारे रहना पडता है । आखिर यह कैसा न्याय है । समाज में इन्हें चुनाव लडने तक का प्रतिबंध है जो पूरी तरह से यह असंवैधानिक है । आज स्थति ऐसी है कि संविधान के मौलिक अधिकार में जो अधिकार दिए गए है उससे भी ये लोग वंचित हैं । इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि हम सभी जान कर भी अनजान बने बैठे है । आखिर समाज और देश से यह भेदभाव कब मिटेगा यह आने वाला समय ही बतायेगा ।