Friday, September 10, 2010

कप्तान से कैप्टन तक का सफर

क्रिकेट के मैदान पर चौके-छक्के उड़ाने वाले और देश में इस खेल के भगवान कहे जाने वाले, अपने बल्ले से क्रिकेट जगत की बुलंदियों को छू चुके स्टार बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर को क्रिकेट के क्षेत्र में उनकी उपलब्धियों के लिए भारतीय वायु सेना [आईएएफ] में ग्रुप कैप्टन का मानद पद से सम्मानित किया गया। इतना ही नहीं रैंक पाने के बाद सचिन तेंडुलकर विश्व के आधुनिकतम युद्धक विमान सुखोई 30 एमकेआई में उड़ान भड़ने के लिए बेकरार हैं। तेंदुलकर पहले ऐसे खिलाड़ी हैं, जिन्हें आईएएफ ने इस पद से सम्मानित किया है और वह यह सम्मान हासिल करने वाले पहले ऐसे व्यक्ति हैं जिनका उड्डयन क्षेत्र से कोई संबंध नही है।
इससे पहले 2008 में भारत के विश्व कप विजेता कप्तान कपिल देव को प्रादेशिक सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल के मानद पद से सम्मानित किया गया था। रिकार्डों के बादशाह 37 वर्षीय तेंदुलकर को वायुसेना में उसके ब्रांड एंबेसडर के तौर पर शामिल किया गया है। आईएएफ प्रमुख एयर चीफ मार्शल पी वी नायक ने वायुसेना आडिटोरियम में रंगारंग समारोह में उन्हें इस पद से सम्मानित किया। तेंदुलकर ने सम्मान हासिल करने के बाद कहा, 'वायुसेना से सम्मानित होना बड़ी खुशी और सम्मान की बात है। जो मैं सोचता था वह आज सच हो गया। मैं वायुसेना से जुड़कर बहुत गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं। मैं युवाओं से वायुसेना से जुड़ने और देश की सेवा करने का आग्रह करता हूं।'
इससे पहले राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने 23 जून को इस स्टार बल्लेबाज को वायुसेना के मानद पद से सम्मानित करने को मंजूरी दी थी। तेंदुलकर को यह सम्मान देश की सेवा में योगदान देने वाली प्रमुख हस्तियों को सैन्य बलों के मानद पद से सम्मानित करने के प्रावधान के तहत दिया गया है। वायुसेना का मानना है कि तेंदुलकर के जुड़ने से युवा पीढ़ी आईएएफ से जुड़ने और देश की सेवा करने के लिए प्रेरित होगी। नायक ने कहा, 'युवा उनसे [तेंदुलकर] प्रेरित हैं। मेरा मानना है कि इससे युवा वायुसेना से जुड़ने के प्रति प्रेरित होंगे। आईएएफ को बेहतर बनाने के लिए उपाय करना मेरा कर्तव्य है और सचिन के जुड़ने से वायुसेना के बारे में लोगों में जागरूकता लाने में मदद मिलेगी।'


तेंदुलकर मानद रैंक से सम्मानित होने से पहले आईएएफ से जुड़ने की प्रक्रिया से परिचित हुए और उन्होंने मूल सैन्य अभ्यास और ड्रिल का प्रशिक्षण लिया।
सचिन से पहले आईएएफ ने 21 हस्तियों को मानद पद से सम्मानित किया है
1.जवाहर यशवंत राव(जव्हार के राजा) फ्लाइट लेफ्टिनेंट, 1944
2.रूप चंद्र(रॉयल एयर फोर्स अधिकारी) विंग कमांडर,1947
3.महाराजा मानवंत सिंह(जोधपुर के राजा) ग्रुप कैप्टन, 1948
4.जे.ब्युमॉन्ट(रॉयल इंडियन एयर फोर्स) ग्रुप कैप्टन,1950
5.सर थॉमस एमहर्स्ट(रॉयल एयर फोर्स) एयर मार्शल,1950
6.नवाब हमीदुल्लाह(भोपाल के नबाव) एयर वाइस मार्शल,1951
7.सर प्रताप चंद्र(मयूरभंज के महाराजा) फ्लाइट लेफ्टिनेंट,1951
8.जीई गिब्स(रॉयल एयर फोर्स अधिकारी) एयर मार्शल,1954
9.महाराजा उमेंद्र सिंह(जोधपुर के महाराजा) एयर वाइस मार्शल,1955
10.राजा नरेंद्र महापात्र(रणपुर के महाराजा) फ्लाइट लफ्टिनेंट,1956
11.एनआर बत्रा, स्क्वाड्रन लीडर,1962
12.एएस संधू(जन संपर्क अधिकारी) फ्लाइट लेफ्टिनेंट,1971
13.एसके कुलकर्णी(जन संपर्क अधिकारी) स्क्वाड्रन लीडर,1971
14.सी.रमानी(जन संपर्क अधिकारी) स्क्वाड्रन लीडर,1971
15.एसडी जडेजा(जामनगर के महाराजा) विंग कमांडर,1973
16.जेआरडी टाटा(ग्रुप कैप्टन,1948,एयर वाइस मार्शल1974
17.एचएस मलिक(उच्चायुक्त) विंग कमांडर,1949-ग्रुप कैप्टन,1975
18.यदु नंदन चतुर्वेदी(जन संपर्क अधिकारी) फ्लाइट लेफ्टिनेंट,1982
19.अभय देव(जन संपर्क अधिकारी) स्क्वाड्रन लीडर,1989
20.सरदार सुरजीत(पटियाला के महाराजा) एयर कमोडोर,1990
21.विजयपत सिंघानिया(उद्योगपति) एयर कमोडोर,1990
कपिल पाजी भी बन चुके हैं कर्नल
साल 2008 में 1983 का विश्वकप जिताने वाले कप्तान कपिल देव को आर्मी के लेफ्टिनेंट कर्नल के पद से नवाजा गया था। इससे पहले आईएएफ ने उद्योगपति और विमानन के दिग्गज विजयपत सिंघानिया को एयर कमोडोर की उपाधि से सम्मानित किया थाकुछ इस तरह होती हैं एयर फोर्स के अफसरों की रैंक्स
11. पायलट ऑफिसर
10. फ्लाइंग ऑफिसर
09. फ्लाइट लैफ्टिनैंट
08. स्काड्रन लीडर
07. विंग कमांडर
06. ग्रुप कमांडर- (सचिन को मिलने वाली मानद रैंक)
05. एयर कोमोडेर
04. एयर वाइस मार्शल
03.एयर मार्शल
02. एयर चीफ मार्शल
01. मार्शल ऑफ द एयर फोर्स
इस तरह सचिन मानद रैंक मिलने के बाद वायूसेना के अफसरों की रैंकिंग में छठे पायदान पर हो गए। तेंदुलकर ने अपने दो दशक से अधिक समय के करियर में कई रिकार्ड बनाए हैं। वह सर्वाधिक 169 टेस्ट मैच खेलने वाले क्रिकेटर है। इसके अलावा उन्होंने 442 वन डे मैच खेले हैं और श्रीलंका के सनथ जयसूर्या के 444 मैच के विश्व रिकार्ड के काफी करीब हैं। तेंदुलकर ने अब तक टेस्ट मैचों में 56.08 की औसत से 13,742 रन बनाए हैं जिसमें 48 शतक और 55 अर्धशतक दर्ज हैं। उन्होंने वनडे मैचों में 46 शतक, 93 अर्द्धशतक सहित 17,598 रन,45.12 के औसत से बनाए हैं। वह वनडे मैचों में दोहरा शतक जमाने वाले दुनिया के पहले एकमात्र बल्लेबाज हैं।

सोनिया गांधी ने रचा इतिहास

कांग्रेस के 125 वर्षों के इतिहास में सोनिया गांधी ने नया इतिहास रचा है। उन्होंने चौथी बार औपचारिक रूप से अध्यक्ष पद की कमान संभाली है। रायबरेली से सांसद चुनी जाती रही सोनिया ने आधिकारिक रूप से 1998 में पहली बार अध्यक्ष की कुर्सी संभाली थी। वह नेहरू गांधी परिवार की पांचवीं और विदेशी मूल की आठवीं शख्सियत हैं जिन्होंने अध्यक्ष पद संभाला है। चौथी बार अध्यक्ष पद संभालने के बाद सोनिया गांधी ने सबका शुक्रिया अदा करते हुए कहा की देशभर के कांग्रेसजनों ने सर्वसम्मति से एक बार फिर निर्विरोध अध्यक्ष चुना है, इसके लिए मैं उनकी आभारी हूं। कांग्रेस पद देश के प्रति जिम्मेदारी भरा पद है जो देश और समाज के हर वर्ग को अपने साथ जोड़ने का काम करती है। यह हमारा सौभाग्य है कि हमें चौथी बार कांग्रेस अध्यक्ष पद संभालने का मौका मिला है, जिसपर हम खड़ा उतड़ने का प्रयास करेगें।

सोनिया गांधी का लगातार चौथी बार कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष बनना कोई बड़ी राजनीतिक घटना नहीं है। फिर भी इसका अपना महत्व है। कांग्रेस देश का सबसे पुराना और सबसे बड़ा राजनीतिक दल है। एक समय था, जब देश में सोनिया विरोध की हवा थी। कांग्रेस-विरोध का भी समय इस देश ने देखा है। दोनों ने विरोधों व विवादों को झेला और चुनौतियों का सामना करते हुए आज देश के सामने दोनों - कांग्रेस और सोनिया गांधी लगभग निर्विवाद रूप से अव्वल दर्जे की पार्टी और लोकप्रिय नेता के रूप में खड़े हैं।

कांग्रेस विरोधी भाजपा ने तो एक लोकसभा चुनाव सिर्फ सोनिया के विदेशी मूल को मुद्दा बनाकर लड़ा था। शरद पवार उसी के चलते कांग्रेस से अलग हो गए थे और अपना नया दल बना लिया था। बाद के चुनावों में भाजपा और पवार की नई पार्टी दोनों के ही हालात बिगड़ते गए और सोनिया गांधी का कद बढ़ता चला गया। वे विदेशी मूल की हैं, उन्हें हिंदी बोलना-लिखना नहीं आता, वे राजनीति नहीं समझतीं, नेहरू-गांधी परिवार की हैं, कांग्रेस में सिर्फ चमचागिरी चलती है.. इन सब बातों को पूरी तरह दरकिनार कर सोनिया आज पुन: कांग्रेस की सर्वमान्य नेता के रूप में देश के सामने खड़ी हैं।

सोनिया के ही अध्यक्ष काल में कई वर्षो बाद पिछले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने न सिर्फ सर्वाधिक सीटें जीतीं वरन् दूसरी बार पुन: केंद्र में सरकार भी बनाई। कांग्रेस और श्रीमती गांधी की सबसे तीखी आलोचक भाजपा कहीं की नहीं रही। गैर-कांग्रेसवाद के कट्टर समर्थक भी आज दबी आवाज में यह कहते हैं कि सोनिया गांधी ने कांग्रेस को संजीवनी दी है और आज तो वे कांग्रेस की पर्याय हैं।

भारतीय राजनीति में नेहरू-गांधी परिवार का अहम स्थान रहा है। उसी खानदान की सोनिया गांधी पहली सदस्य हैं जो चौथी बार पार्टी अध्यक्ष बनी हैं। आज नजर घुमाएं तो श्रीमती गांधी जितना बड़े कद वाला राजनेता दूर-दूर तक दिखलाई नहीं पड़ता। दूसरी राष्ट्रीय पार्टियों के अध्यक्ष चाहे वे नितिन गडकरी हों या मुलायम सिंह, शरद पवार हों या मायावती, जयललिता हों या ममता बनर्जी, सोनिया गांधी का मुकाबला नहीं कर सकते। नई पारी में सोनिया के लिए कई चुनौतियां रहेंगी। पहली प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को प्रभावी प्रधानमंत्री बनने देने की जबकि दूसरी देश में बढ़ती महंगाई पर काबू करने की। जनता समस्याओं से निजात पाने के लिए उन्हीं की ओर देखती है।
सोनिया का सफर
भारत की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के सबसे ऊंचे पद पर बैठी सोनिया गांधी का अर्से तक राजनीति से कोई वास्‍ता नहीं रहा। वक्त ने ऐसी करवट बदली की उन्हें राजनीति में आना ही पड़ा। 9 दिसंबर 1946 को जन्मी सोनिया ने कांग्रेस की सामान्य सदस्यता कोलकाता में पार्टी के अधिवेशन में 1997 में ली थी और उसके 62 दिन बाद ही 1998 में उन्‍हें पार्टी अध्यक्ष पद के लिए चुन लिया गया था। सोनिया गांधी ने 1999 में वह कर्नाटक के बेल्लारी और उत्तरप्रदेश के रायबरेली से लोकसभा चुनाव लड़ा और भाजपा की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज को हराया। 2004 और 2009 में सोनिया राय बरेली से सांसद चुनी गईं। अभी सोनिया गांधी रायबरेली से सांसद हैं।
2004 में जब सोनिया गांधी के नेतृत्व में आम चुनावों में कांग्रेस की जीत हुई और सोनिया गांधी को देश का अगला प्रधानमंत्री देखा जाने लगा तो विपक्ष ने इसका कड़ा विरोध किया। सुषमा स्वराज ने तो यह भी कह दिया था कि अगर सोनिया गांधी भारत की प्रधानमंत्री बनी तो वो अपना सिर मुंडवा लेंगी और जमीन पर सोएंगी। पर सुषमा स्वराज की ये ख़्वाहिश पूरी न हो सकी, उनके बाल भी बच गये और उनकी प्रतिष्ठा भी, क्योंकि सोनिया गांधी ने स्वयं हीं प्रधानमन्त्री बनना नामंजूर कर दिया
लेकिन सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद के लिए जब अर्थशास्त्री और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता डॉक्टर मनमोहन सिंह का नाम लिया तो पूरा देश हैरान रह गया। ये पहली बार नहीं हुआ था जब सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद छोड़ा हो। सोनिया गांधी ने अपने पति श्री राजीव गांधी की मौत के बाद भी कांग्रेस नेताओं द्वारा दिए गए प्रधानमंत्री बनने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। उस समय श्री पी.वी.नरसिंहा राव को देश का प्रधानमंत्री चुना गया था।
सोनिया गांधी ने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के सामने सशक्त विपक्ष होने की कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई। 1999 से 2004 तक अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान अक्सर मजाक में यह कहा जाता था कि अटल जी भाग्य के धनी है जो उन्हें सोनिया गांधी जैसा नेता विपक्ष मिला है. लेकिन वे उस वक्त यह अंदाज नहीं लगा पाये कि सोनिया गांधी अटल जी की पार्टी को सदा सदा के लिए विपक्ष बना देने की दिशा में काम कर रही हैं. इसमें कोई शक नहीं कि अटल जी को विपक्ष विहीन सदन मिला था फिर भी अटल जी ने कभी सोनिया गांधी को कमतर राजनीतिज्ञ के रूप में नहीं देखा। शायद यही कारण है कि कांग्रेस आज भी अटल बिहारी वाजपेयी को लेकर सौम्य रुख रखती है। अटल शासन के पांच सालों में सोनिया गांधी ने पार्टी को जमीन पर मजबूत करने की दिशा में कदम आगे बढ़ाया. सदन में सरकार से हाथापाई करने की बजाय चुपचाप वे लोगों के बीच जाती रहीं और पार्टी के काम को आगे बढ़ाती रहीं। दूसरी ओर यही वह दौर था जब उनके दो सबसे अधिक विश्वस्त सहयोगी माधवराव सिंधिया और राजेश पायलट अकाल मृत्यु के शिकार हो गये लेकिन सोनिया गांधी ने पार्टी को आंच नहीं आने दिया। परिणाम 2004 में सामने आया जब कांग्रेस ने यूपीए के तहत सत्ता हासिल कर ली। भाजपा लाख कोशिश करके भी भारत उदय नहीं कर पायी लेकिन सोनिया गांधी ने छह साल के अंदर देश में कांग्रेस उदय कर दिया.
2004 में सोनिया गांधी की परम इच्छा खुद प्रधानमंत्री बनने की थी. इसके लिए उन्होंने कोशिश भी किया लेकिन जल्द ही उन्हें समझ में आ गया कि अगर वे चाहेंगी तो उन्हें प्रधानमंत्री बनने से कोई रोक नहीं सकता लेकिन पार्टी का अस्तित्व शायद हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा. सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा इतना मुखर था कि कांग्रेस सदा-सदा के लिए समाप्त हो जाती। सोनिया गांधी ने यह भांप लिया और अपना इच्छा को कभी जाहिर नहीं किया, बजाय सत्ता के शीर्ष पर बैठने के उन्होंने सत्ता की चाभी अपने पास रख ली। उन्होंने देश में पहली बार एक ठप्पा प्रधानमंत्री नियुक्त करवाया जिसके अपने जीवन में इससे बड़ी पदवी कुछ हो नहीं सकती थी। उस वक्त अगर मनमोहन सिंह की बजाय प्रणव मुखर्जी या फिर किसी और का नाम सोनिया गांधी सामने रखती तो जल्द ही उस नेता की राजनीतिक महत्वाकांक्षा से लड़ना पड़ता। मनमोहन सिंह के साथ ऐसी कोई समस्या नहीं थी। पिछले कांग्रेस शासन में प्रधानमंत्री भले ही मनमोहन सिंह रहे हों लेकिन सारी राजनीतिक शक्तियां सोनिया गांधी के पास ही निहित थीं। देश के सभी मंत्रालयों पर आदेश भले ही प्रधानमंत्री कार्यालय का चलता हो लेकिन आदेश की वह प्रति तैयार होती थी यूपीए चेयरपर्सन के दफ्तर या घर से। पूरे पांच साल देश में जहां सबसे पहले प्रधानमंत्री को पहुंचना चाहिए वहां सोनिया गांधी को पहुंचाया गया और कांग्रेस ने यह साबित किया कि दरबार के बाहर किसी का कोई अस्तित्व नहीं,खुद प्रधानमंत्री का भी नहीं।
सोनिया गांधी का कमाल यह है कि वे हर योजना की सूत्रधार होती हैं लेकिन योजनाकार के रूप में उनका कहीं नाम नहीं होता है। वे राजनीति में गुप्तचर विद्या का भरपूर प्रयोग करती हैं लेकिन कोई उनके व्यक्तित्व को संदिग्ध नहीं कह सकता। वे जीत के बाद जश्न मनाने की बजाय बड़ी जीत की तैयारी में जुट जाती हैं। सोनिया गांधी और उनका दरबार अगले बीस साल के लिए देश में कांग्रेस को स्थापित करने की दिशा में काम कर रहे हैं। फिलहाल कलह से कमजोर होती भाजपा के कारण वे लोग इसमें सफल होते भी दिखाई दे रहे हैं।
2009 के चुनाव में सोनिया गांधी एक अनिश्चय के साथ उतरी थीं,और कांग्रेस को जीत दिलाने में कामयाब रही । जाहिर था इतनी बड़ी जीत की उम्मीद उन्हें भी नहीं थी क्योंकि परिणाम आने से एक दिन पहले कांग्रेस के रणनीतिकार अमर सिंह से भी हाथ मिलाने की बात करने लगे थे। लेकिन परिणाम आया तो सब कुछ उलट गया. कांग्रेस पहले से मजबूत होकर उभरी थी और सोनिया गांधी राहुल को भी स्थापित करने में सफल हो गयी थीं। राजनीति के कुल जमा 12 वर्षों में वे राजमाता के परम पद पर आसीन हैं और निकट भविष्य में उस पद को कोई खतरा भी नजर नहीं आता है. लेकिन इस बार सोनिया गांधी ने न तो यूपीए चेयरपर्सन के नाते अपने आपको स्थापित करने की कोशिश की और न ही मनमोहन सिंह के आगे आगे चलती दिखाई दे रही हैं। सोनिया गांधी एक बार फिर नयी योजना पर काम करती दिखाई दे रही हैं।
ऐसा लगता है कि सोनिया गांधी अगले बीस सालों के लिए कांग्रेस को सत्ता में स्थापित करने की दिशा में काम कर रही हैं. निश्चित रूप से इसके लिए वे हर तरह के प्रयास कर रही हैं। यह सोनिया गांधी की ही राजनीति है जो बताती है कि सफल होने के बाद शांत होकर मत बैठो, जश्न मत मनाओ. उससे बड़ी सफलता के लिए तैयारी करो. केन्द्र में सत्ता वापस आने के बाद अब कांग्रेस बीस साला परियोजना पर काम करती दिखाई दे रही है। खस्ताहाल होती भाजपा उसके इस परियोजना के सफल होने की पूरी गारंटी भी दे रही है। इसलिए 2009 के चुनाव के बाद सोनिया गांधी सत्ता प्रतिष्ठान को नियंत्रित करने की बजाय लोक अधिष्ठान को मजबूत करने में लगी हैं। यह काम वे अपने लिए नहीं कर रही हैं, इसका सीधा फायदा कांग्रेस और उनके बेटे राहुल को होगा। सोनिया गांधी ऐसी ही योग्य राजनीतिज्ञ हैं जो सत्ता संघर्ष में अपने हर हथियार का इस्तेमाल करती है. वे एक से एक लाजवाब योजनाएं बनाती हैं, उसे लागू करवाती हैं लेकिन जब जनता के सामने आती हैं तो भूले से भी यह अहसास नहीं होता कि यह महिला ऐसी गजब की योजनाकार भी हो सकती है। जनता के सामने वे एक आदर्श गृहणी और सीधी सरल सुसंस्कृत नारी ही नजर आती है। यही सोनिया गांधी का कमाल है और यही उनकी विलक्षण योग्यता जिसके बदौलत एकबार फिर कांग्रेस की कमान संभालती नजर आएंगी। जो कठिनाई और चुनौतियों से भरा होगा।