Tuesday, June 30, 2009

दोस्ती कुछ कहता है...

दोस्ती कुछ कहता है...

मत इंतज़ार कराओ हमे इतना की
वक़्त के फैसले पर अफ़सोस हो जाए
क्या पता कल तुम लौटकर आओ
और हम खामोश हो जाएं.......

दोस्ती खिलते फूलों कि खुशबु में है
दोस्ती ढलते सूरज कि किरणों में है
दोस्ती हर नए दिन कि उम्मीद है
दोस्ती ख्वाब है, दोस्ती जीत है
दोस्ती प्यार है, दोस्ती गीत है
दोस्ती दो जहानो का संगीत है
दोस्ती हर ख़ुशी है, दोस्ती जिन्दगी है
दोस्ती रोशनी है, दोस्ती बंदगी है
दोस्ती संग चलती हवाओं में है
दोस्ती इन बरसती घटाओं में है
दोस्ती दोस्तो कि वफाओं में है
हमारी दोस्ती बनी रहे, दोस्ती यही कहता है....

दोस्त के लिए प्यारा सा कलाम
मैं दुआ करता हूँ कि सफलता आपके कदम चूमे , आपका संसार खुशियों से भरा रहे , हमारी दोस्ती जिन्दगी भर बनी रहे और आप सदा यूं ही मुस्कुराते रहे ।

दूरियों से फर्क पड़ता नहीं
बात तो दिलों कि नज़दीकियों से होती है
दोस्ती तो कुछ आप जैसो से है
वरना मुलाकात तो जाने कितनों से होती है
दिल से खेलना हमे आता नहीं
इसलिये इश्क की बाजी हम हार गए
शायद मेरी जिन्दगी से बहुत प्यार था उन्हें
इसलिये मुझे जिंदा ही मार गए ।
लोग मोहब्बत को खुदा का नाम देते है,
कोई करता है तो इल्जाम देते है।
कहते है पत्थर दिल रोया नही करते,
और पत्थर के रोने को झरने का नाम देते है।
भीगी आँखों से मुस्कराने में मज़ा और है,
हसते हँसते पलके भीगने में मज़ा और है,
बात कहके तो कोई भी समझा लेता है,
पर खामोशी कोई समझे तो मज़ा और है.......

मुस्कराना ही ख़ुशी नहीं होती,
उम्र बिताना ही ज़िन्दगी नहीं होती,
दोस्त को रोज याद करना पड़ता है,
क्योकि दोस्त कहना ही दोस्ती नहीं होती........
फूलों सी नाजुक चीज है दोस्ती,
सुर्ख गुलाब की महक है दोस्ती,
सदा हँसने हँसाने वाला पल है दोस्ती,
दुखों के सागर में एक कश्ती है दोस्ती,
काँटों के दामन में महकता फूल है दोस्ती,
जिंदगी भर साथ निभाने वाला रिश्ता है दोस्ती,
रिश्तों की नाजुकता समझाती है दोस्ती,
रिश्तों में विश्वास दिलाती है दोस्ती,
तन्हाई में सहारा है दोस्ती,
मझधार में किनारा है दोस्ती,
जिंदगी भर जीवन में महकती है दोस्ती,
किसी-किसी के नसीब में आती है दोस्ती,
हर खुशी हर गम का सहारा है दोस्ती,
हर आँख में बसने वाला नजारा है दोस्ती,
कमी है इस जमीं पर पूजने वालों की वरना
इस जमीं पर भगवान है दोस्ती ।


ऐसा दोस्त चाहिए जो हमे अपना मान सके,जो हमारे दिल को जान सके,चल रहे है हम तेज़ बारिश मे,फिर भी पानी मे से आँसुओ को पहचान सके.....ख़ुश्बू की तरह मेरी सांसो मे रहनालहू बनके मेरी नस नस मे बहना,दोस्ती होती है रिश्तो का अनमोल गेहनाइसलिए दोस्ती को कभी अलविदा ना कहना.....दोस्ती सच्ची हो तो वक़्त रुक जाता है॥आसमान लाख ऊँचा हो मगर झुक जाता है...दोस्ती में दुनिया लाख बने रुकावट,अगर दोस्त सच्चा हो तो दुनिया भी झुका देता है...दोस्ती वो एहसास है जो मिटता नहीं...दोस्ती पर्वत है वो, जो झुकता नहीं।,इसकी कीमत क्या लगायेगी दुनिया,यह वो अनमोल मोती है जो बिकता नहीं....सच्ची है दोस्ती आज़मा के देखो,करके यकीन मुझपे मेरे पास आके देख लो,बदलता नहीं कभी सोना अपना रंग,चाहे जितनी बार आग में जला के देखलो आपसे दोस्ती हम यूं ही नही कर बैठे,क्या करे हमारी पसंद ही कुछ "ख़ास" है। .चिरागों से अगर अँधेरा दूर होता,तोह चाँद की चाहत किसे होती.कट सकती अगर अकेले जिन्दगी,तो दोस्ती नाम की चीज़ ही न होती.कभी किसी से जीकर ऐ जुदाई मत करना,इस दोस्त से कभी रुसवाई मत करना,जब दिल उब जाए हमसे तो बता देना,न बताकर बेवफाई मत करना.दोस्ती सची हो तो वक्त रुक जता हैअस्मा लाख ऊँचा हो मगर झुक जता हैदोस्ती मे दुनिया लाख बने रुकावट,अगर दोस्त सचा हो तो खुद बन जाता है॥


दोस्ती यही कहता है सच्चा दोस्त खुद बनजाता है........।

Thursday, June 25, 2009

नारी की दशा व दिशा


नारी की दशा व दिशा

सरकार और मीडिया महिला सशक्तिकरण की बहुत बातें करते हैं। नामचीन महिलाओं का उदाहरण देकर कहा जाता है कि महिला अब पुरूषों से कमतर नहीं हैं। लेकिन जब किसी गरीब, लाचार और बेबस लड़की के बिकने की दास्तान सामने आती है तो महिला सशक्तिकरण की धज्जियां उड़ जाती हैं। बड़ी-बड़ी बातें सब दिखावा बन कर रह जाती है। ऐसी ही घटना पश्चिम बंगाल की 25 साल की मौसमी का है जिसे पश्चिम बंगाल से खरीदकर लाया गया। उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। जब मौसमी को अपने बेचे जाने की भनक लगी तो वह किसी तरह दरिंदों के चंगुल से निकल कर भागी। लड़की को मेरठ थाना लाया गया। लड़की केवल बंगला में ही बातें कर रही थी। 'संकल्प' संस्था की निदेषक श्रीमती अतुल शर्मा थाने पहुंचकर कलकत्ता स्थित अपने एक कार्यकर्ता से मौसमी की बात करायी। कार्यकर्ता ने हिन्दी में मौसमी की व्यथा को बयान किया। इससे पहले भी मेरठ में लड़कियां के बिकने की खबरें आती रही हैं। संकल्प की अतुल शर्मा बताती हैं कि मेरठ लड़कियों की खरीद-फरोख्त की मंडी बन चुका है। श्रीमती अतुल बताती हैं कि वे अब तक 131 लड़कियों को बिकने से बचा चुकी हैं। लड़कियों को दिल्ली के जीबी रोड तथा मेरठ के कबाड़ी बाजार स्थित रेड लाइट एरिया मे खपाया जाता है।दरअसल, मेरठ ही नहीं, पूरा पश्चिमी उत्तर प्रदेश लड़कियों की खरीद-फरोख्त और देह व्यापार का अड्डा बन गया है। ये लड़कियां नेपाल, असम, बंगाल, बिहार, झारखंड मध्य प्रदेश तथा राजस्थान आदि प्रदेशों से खरीदकर लायी जाती हैं। जिनमें अधिकांश लड़कियां गरीब परिवार की होतीं हैं। पश्चिमी यूपी में लगभग 6 हजार महिलाएं तस्करी से लाकर बेची जा चुकी हैं। इनमें से कुछ 15 से 16 तथा कुछ 20 से 22 साल की आयु की थीं। जानकारी के मुताबिक झारखंड के लोगों के लिए मेरठ मंडल ही यूपी है। झारखंड के बोकारो, हजारी बाग, छतरा और पश्चिम सिंहभूम जिलों में महिलाओं की हालत सबसे खराब है। इन्हीं जिलों से महिलाओं की तस्करी सबसे अधिक होती है।
मेरठ की बात करें तो पिछले दिसम्बर 2007 तक सरकारी आंकडों के अनुसार 419 बच्चों के गायब होने की रिपोर्ट है। इनमें से विभिन्न आयु वर्ग की 270 लड़कियां हैं। लड़कियों के बारे मे पुलिस शुरूआती दिनों में प्रेम प्रसंग का मामला बनाकर गम्भीरता से जांच नहीं करती । दूसरी तरफ निठारी कांड में गायब हुए बच्चों की तलाश के लिए बड़ी-बड़ी बातें की गयी थीं। लेकिन निठारी कांड पर धूल जमने के साथ ही गायब हुऐ बच्चों की तलाश पर भी ग्रहण लग गया है। मेरठ महानगर के रेड लाइट एरिया में लगभग 1800 सैक्स वर्कर थीं। इनमें लगभग 1160 केवल 12 से लेकर 16 वर्ष की नाबालिग बच्चियां हैं, जिन्हें अन्य प्रदेशों से लाकर जबरन इस धंधे में लगाया गया है। जब से यह कहा जाने लगा है कि कम उम्र की लड़कियों से सम्बन्ध बनाने से एड्स का खतरा नहीं होता, तब से बाल सैक्स वर्करों की संख्या में इजाफा हुआ है। देह व्यापार में उतरते ही इन लड़कियों के शोषण का अंतहीन सिलसिला शुरू हो जाता है। दलालों और कोठा संचालकों का उनकी हर सांस और गतिविधि पर कड़ा शिकंजा रहता है। यदि कोई लड़की भागने की कोशिश करती है तो उस पर भयंकर अत्याचार किए जाते हैं। शारीरिक हिंसा, लगातार गर्भपात, एड्स, टीबी तथा हैपेटाइटिस बी जैसी बीमारियां इनका भाग्य बन जाती हैं। मेरठ के रेड लाइट एरिया में ऐसी अनेकों लड़कियां हैं, जो इस धन्धे से बाहर आना चाहती हैं। लेकिन माफिया उन्हें धन्धे से बाहर नहीं आने देना चाहते। वे अगर बाहर आ भी जाती हैं तो उनके सामने सबसे सवाल यह रहता है कि क्या समाज उन्हें स्वीकार करेगा। पिछले दिनों मेरठ के रेड लाइट एरिया की जूही नाम की सैक्स वर्कर ने सुरेश नाम के लड़के से कोर्ट मैरिज कर ली। लेकिन कोठा संचालिका और दलालों को जूही का शादी करना अच्छा नहीं लगा। उसे जबरदस्ती फिर से कोठे पर ले जाने का प्रयास किया गया, जो असफल हो गया। लेकिन जूही एक अपवाद मात्र है। धन्धे से बाहर आने की चाहत रखने वाली हर सैक्स वर्कर की किस्मत जूही जैसी नहीं होती। अपने लिए दुल्हन खरीद कर लाये एक अधेड़ अविवाहित ने बताया कि दिल्ली में एक दर्जन से भी अधिक स्थानों से नेपाल, बिहार, बंगाल, झारखंड तथा अन्य प्रदेशों से लायी गयी लड़कियों को मात्र 15 से 20 हजार में खरीदा जा सकता है।' दिल्ली में यह सब कुछ प्लेसमेंट एजेंसियों' के माध्यम से हो रहा है। इन्हीं प्लेसमेंट एजेंसियों के एजेन्ट आदिवासियों वाले राज्यों में नौकरी-रोजगार देने का लालच देकर लाते हैं और उन्हें जरूरतमंदों को बेच देते हैं। ये एजेंसियां इन लड़कियों के नाम-पते भी गलत दर्ज करते हैं ताकि इनके परिवार वाले इन्हें ढूंढ न सकें। अधेड़ लोग सन्तान पैदा करने के लिए तो कुछ मात्र अपनी हवस पूरी करने के लिए इन लड़कियों को खरीदते हैं।
कुछ सालों के बाद इन लड़कियों को जिस्म फरोशी के धंधे में धकेलकर दूसरी लड़की खरीद ली जाती है। कुछ पुलिस अधिकारी यह मानते हैं कि लड़कियों को बंधक बनाकर उन्हें पत्नि बनाकर रखा जाता है, लेकिन लड़की के बयान न देने के कारण पुलिस कार्यवाई नहीं कर पाती है। लड़कियों की खरीद-फरोख्त तथा देह व्यापार एक चुनौती बन चुका है। इस व्यापार में माफियाओं के दखल से हालात और भी अधिक विस्फोटक हो गये हैं। सैक्स वर्करों को जागरूक करने का कार्य करने वाले गैर सरकारी संगठनों को इन माफियाओं से अक्सर जान से मारने की धमकी मिलती रहती है। कुछ जातियों में देह व्यापार को मान्यता मिली हुई है। यदि ऐसी जातियों को छोड़ दिया जाये तो देह व्यापार में आने वाली अधिकतर लड़कियां मजबूर और परिस्थितियों की मारी होती हैं। प्यार के नाम ठगी गयीं, बेसहारा और विधवाएं होती हैं। किसी देश की अर्थ व्यवस्था चरमरा जाना भी देह व्यापार का मुख्य कारण बनता है। सोवियत संघ के विघटन के बाद आजाद हुऐ कुछ देशों की लड़कियों की भारत के देह बाजार में आपूर्ति हो रही है। एक दशक पहले से नजर डाला जाए तो दिल्ली, कोलकाता, चैन्नई, बंगलौर और हैदराबाद में सैक्स वर्करों की संख्या लगभग सत्तर हजार थी। एक दशक बाद यह संख्या क्या होगी इसकर केवल अंदाजा लगाया जा सकता है।देह व्यापार में केवल गरीब, लाचार और बेबस औरतें और लड़कियां ही नहीं हैं। देह व्यापार का एक चेहरा ग्लैमर से भरपूर भी है। सम्पन्न घरों की वे औरतें और लड़कियां भी इस धन्धे में लिप्त हैं, जो अपने अनाप-शनाप खर्चे पूरे करने और सोसाइटी में अपने स्टेट्स को कायम रखने के लिए अपनी देह का सौदा करती हैं। भूमंडलीकरण के इस दौर में नवधनाढ़यों का एक ऐसा वर्ग तैयार हुआ है, जो नारी देह को खरीदकर अपनी शारीरिक भूख को शांत करना चाहता है। इन धनाढ़यों की जरूरतों को पूरा करने का साधन ऐसी ही औरतें और लड़कियां बनती हैं।समाज का एक बर्ग यह भी मानता है कि रेड लाइट एरिया समाज की जरूरत है। इस वर्ग के अनुसार भारत की आबादी का लगभग आधा हिस्सा युवा है और इस युवा वर्ग के एक बड़े हिस्से को अनेक कारणों से अपनी शारीरिक जरूरत पूरी करने के लिए रेड लाइट एरिया की जरूरत है। सर्वे बताते हैं कि जहां रेड लाइट एरिया नहीं हैं, वहां बलात्कार की घटनाओं में इजाफा हुआ है।
सैक्स वर्करों की बीच काम करने वाली गैर सरकारी संस्थाओं के सामने देह व्यापार को छोड़कर समाज की मुख्य धारा में आने वाली लड़कियों का पुनर्वास एक बड़ी चुनौती होता है। हालांकि सरकार सैक्स वर्करों के पुनर्वास के लिए कई योजाएं चलाती है। लेकिन सैक्स वर्करों के अनपढ़ होने, स्थानीय नहीं होने तथा दलालों के भय से वे योजना का लाभ नहीं उठा पाती हैं। कुछ गैर सरकारी संगठन वेश्यावृत्ति के उन्मूलन के लिए सार्थक प्रयास तो कर रहे हैं लेकिन उन्हें समाज, प्रशासन और पुलिस का उचित सहयोग और समर्थन नहीं मिल पाता। गैर सरकारी संगठनों को व्यापक शोध करके सरकार को सुझाव दें कि जो लड़कियां देह व्यापार से बाहर आना चाहती हैं, उनका सफल पुनर्वास कैसे हो तथा सरकार को भी इस समस्या को ध्यान मे रखकर कोई ऐसा कानून लाए जिससे आने वाले समय में इस तरह की घटनाओं को रोका जा सके। इस सब के पीछे नारी भी कम जिम्मेदार नहीं है जो अपने फैशन के आड़ में अपनी जिंदगी को बर्बाद करते हैं ।