Saturday, August 30, 2008

समय ने बदला रिश्ते की पहचान(रक्षाबंधन)

कल-कल करती बहती जीवन रूपी नदी में मधुर तरंगों की तरह आती लहरों की तरह हैं पर्व व त्योहार। भारत क्योंकि परंपरावादी देश है, यहां पर्वो और त्योहारों का अपना अलग महत्व है। व्यक्ति को व्यक्ति से जोडने और संस्कारों से बांधने का इससे बेहतर विकल्प और कोई हो भी नहीं सकता। यह रेशमी धागा हर साल आपको अपने रिश्ते के मूल्यों को याद कराने के लिए बांधा जाता है। रक्षा का अर्थ है सुरक्षा व बंधन है रिश्ता निभाने का संकल्प। केवल सहोदर रिश्तों की याद दिलाने वाला पर्व नहीं है यह, बल्कि पूरे देश को एक साथ जोडने में इस पर्व ने हमेशा ही सक्षम भूमिका निभाई है। पौराणिक मान्यता क अनुसार यह पर्व देवासुर संग्राम से जुडा है। जब देवों और दानवों के बीच युद्ध चल रहा था और दानव विजय की ओर अग्रसर थे तो यह देख कर राजा इंद्र बेहद परेशान थे। दिन-रात उन्हें परेशान देखकर उनकी पत्नी इंद्राणी (जिन्हें शशिकला भी कहा जाता है) ने भगवान की अराधना की। उनकी पूजा से प्रसन्न हो ईश्वर ने उन्हें एक मंत्रसिद्ध धागा दिया। इस धागे को इंद्राणी ने इंद्र की कलाई पर बांध दिया। इस प्रकार इंद्राणी ने पति को विजयी कराने में मदद की। इस धागे को रक्षासूत्र का नाम दिया गया और बाद में यही रक्षा सूत्र रक्षाबंधन हो गया।
इतिहास गवाह है
राखी का सबसे पुराना इतिहास हमें 300 ई.पू. में मिलता है। जब एलेक्जेंडर ने भारत पर चढाई की। राजा पुरु के शौर्य व पराक्रम से विदेशी एलेक्जेंडर अभिभूत था, तभी उसकी विदेशी पत्नी ने स्थानीय लोगों से राखी के बारे में सुना। तुरंत उनके दिमाग में एक विचार कौंधा और उन्होंने राजा पुरु को ससम्मान राखी भेजी। पुरु ने उस राखी को सिर माथे लगा उन्हें बहन माना और युद्ध क्षेत्र में इस राखी के बंधन की पवित्र भावना का पूरा ध्यान रखा।
हिंदुओं द्वारा रक्षाबंधन एक त्योहार के रूप में मनाया जाता रहा है। पुराने समय में इस बंधन से भाई-बहन के पावन रिश्तों की गांठ को और मजबूती प्रदान की जाती थी तथा अपनी रक्षा का वादा भी लिया जाता था। लेकिन चित्तौड की विधवा महारानी कर्मावती ने जब अपने राज्य पर संकट के बादल मंडराते देखे तो उन्होंने गुजरात के बहादुर शाह के खिलाफ मुगल सम्राट हुमायूं को राखी भेज मदद की गुहार लगाई और उस धागे का मान रखते हुए हुमायूं ने तुरंत अपनी सेना चित्तौड रवाना कर दी। इस धागे की मूल भावना को मुगल सम्राट ने न केवल समझा बल्कि उसका मान भी रखा।
गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर ने राखी के पर्व को एकदम नया अर्थ दे दिया। उनका मानना था कि राखी केवल भाई-बहन के संबंधों का पर्व नहीं बल्कि यह इंसानियत का पर्व है। टैगोर ने पूरे समाज में एकता और इंसानियत को बढावा देने के लिए रक्षा के बंधन को माध्यम बनाया। उनका विचार था कि समाज के सभी सदस्यों को एक-दूसरे का खयाल रखना चाहिए और दूसरों की मदद करनी चाहिए। यह उस समय की बात है जब भारत पर अंग्रेज शासन कर रहे थे और 1905 में उन्होंने बंगाल विभाजन का फैसला ले लिया था।
उस समय रबींद्रनाथ ने इस माध्यम से हिंदू और मुसलमानों के बीच भाईचारा बढाने, प्यार और एकता की भावना को पनपने देने के लिए राखी का सहारा लिया। इसके पीछे उनका उद्देश्य यह था कि हिंदू और मुसलमान एकजुट हों और ब्रिटिश शासन के विरुद्ध मोर्चा लें। उन्होंने इस पर्व को भाईचारे की भावना के प्रसार के लिए इस्तेमाल किया। उन्होंने देश के भिन्न संप्रदायों व जातियों के लोगों को राखी के माध्यम से एक नई सोच व दिशा दी। उन्होंने इसके जरिये धर्म, भाषा, वर्ग, समुदाय, लिंग और जाति के भेद को दूर करने की कोशिश की। राखी के धागों से पूरे भारत को एक करने का संदेश दिया। इसी भावना के तहत उन्होंने शांति निकेतन की स्थापना की।
इसमें संदेह नहीं कि सहोदर रिश्तों से ऊपर उठकर रक्षाबंधन की भावना ने हर समय और जरूरत पर अपना रूप बदला है। जब जैसी जरूरत रही वैसा अस्तित्व उसने अपना बनाया। केवल बहन ने भाई को ही नहीं, रक्षा के नाम पर पत्नी ने पति और हिंदू स्त्री ने मुसलमान भाई की कलाई पर इसे बांधा। इस नजरिये से देखें तो एक अर्थ में यह हमारा राष्ट्रीय पर्व है।
पहले और अब के रिश्ते
संबंधों की बात करें तो ये पहले जैसे थे, आज भी वैसे ही हैं। पहले हमारे जीवन का केंद्र बिंदु हमारा घर-परिवार ही हुआ करता था। अधिकतर संयुक्त परिवारों में लोग एक साथ रहते थे और कोई भी त्योहार पूरा परिवार एक साथ मिल कर मनाता था। किसी खास दिन का परिवार के सभी सदस्य बेसब्री से इंतजार करते थे। दरअसल रिश्तों और मानवीय भावनाओं को उत्सव के रूप में मनाना ही राखी है। अपने भाई-बहन के प्रति प्रेम और उसका खयाल रखना ही इसका आधार है। यह पूरे परिवार को एक साथ जोडता है और यही एकजुटता उत्सव के रूप में इस दिन मनाई जाती है।
आज समय और सोच ने इस रिश्ते को प्रभावित किया है। कहीं हत्या तो कहीं दुष्कर्म जैसी घटनाएं सुनने में आती हैं। रिश्तों की गरिमा खोती जा रही है। लेकिन इसमें भी संदेह नहीं कि कुछ अपवादों के कारण सारी मर्यादा, पवित्र भावना तथा अमूल्य रिश्ते को कटघरे में नहीं खडा किया जा सकता। फिर भी यह जरूरी था कि स्त्रियों को उनका पूरा हक मिले।
कानून पर एक नजर
सुप्रीम कोर्ट की वकील कमलेश जैन का कहना है कि यह ठीक है कि पुरुषवादी समाज में स्त्रियों की स्थिति हमेशा शोचनीय रही। पहले पिता, फिर पति और भाइयों पर वह आश्रित रही। इस स्थिति को देखते हुए यह कानून बना कि पैतृक संपत्ति पर बहनों का भी भाइयों के समान पूरा अधिकार हैं। यदि इस कानून की जमीनी सच्चाई पर गौर करें तो यह साफ दिखाई देगा कि इससे स्थितियां बेहतर होने के बजाय और बिगडी ही हैं। अकसर भाई खुशी से बहनों को कुछ नहीं देना चाहता। यहां तक कि कुछ घटनाएं ऐसी भी सामने आई जहां बंटवारे के डर से भाई ने बहन को मरवा या मार डाला। होता यह है कि यह बात बचपन से ही बच्चों को समझाई जाए तभी इसके अच्छा परिणाम सामने आ सकते हैं। क्योंकि यह समस्या मूलरूप से मानसिकता की है। अचानक यह कहना कि बहन को हिस्सा दो, किसी आघात से कम नहीं। दूसरी सच्चाई यह भी है कि कोर्ट-कचहरी में जाकर भाई के खिलाफ खडे होकर अपने अधिकार मांगने का साहस भी बहुत कम स्त्रियों में है। इससे जीवन भर के लिए संबंध खराब हो जाते हैं।
इस संबंध में नई दिल्ली की मनोचिकित्सक जयंती दत्ता का कहना है कि यदि आरंभ से ही बच्चों को इस दिशा में सही रूप से दिशा निर्देश दिए जाएं तो उसी दिशा में आपका दिमाग काम करेगा। अचानक कोई मुद्दा उठ कर ऐसा आए जो आपके लिए एकदम नया हो और उसके लिए दिमागी रूप से आप बिलकुल तैयार न हों तो आधात तो लगेगा ही। जब एक परिवार, एक माता-पिता, एक माहौल व एक थाली में खाकर भाई-बहन बडे होते हैं तो फिर संपत्ति के बंटवारे को लेकर विवाद क्यों? सब कुछ कल तक साझा था तो आज क्यों नहीं? अपनी सोच को विकसित करने की जरूरत है। हो सकता है कि आर्थिक रूप से बहन की आवश्यकताएं भाई से कहीं ज्यादा हों या यह भी हो सकता है कि वह इतनी समर्थ या उदार हो कि वह भाई और पिता से मदद न लेना चाहे। लेकिन वह चाहे या उसका हक देने के लिए भाई को अपनी ओर से तो तैयार रहना ही चाहिए।
आधुनिक संदर्भ
कामकाज के सिलसिले में या नौकरी व व्यवसाय के कारणों से भाई-बहन के बीच दूरियां बढी हैं। एकल परिवारों के बढते चलन तथा संयुक्त परिवारों के विलय से रिश्ते सिमट कर भाई-बहन तक रह गए हैं। पहले जहां एक ही छत के नीचे ताऊ, चाचा, दादा-दादी आदि अनेक रिश्ते होते थे, सभी के बच्चे भाई-बहन की श्रेणी में आते थे। यह पता ही नहीं चलता था कि कौन सगा है था कौन चचेरा। यह जुडाव बेहद मजबूत होता था। आज हालांकि संपर्क सूत्रों में आए क्रांतिकारी बदलावों से दूरियां सिमट गई हैं। एसएमएस, फोन, मेल और इंटरनेट के जरिये दूरियां काफी हद तक सिमट गई है। जब चाहा फ्लाइट पकडी और दूरियां नजदीकियां बन जाती हैं। केवल विदेशों में रह रहे भारतीय ही नहीं, विदेशी भी इस त्योहार का महत्व जानने समझने लगे हैं। पहले जहां महीनों पहले से अपने भाई को राखी भेजने के लिए डाक घर की मेहरबानी पर निर्भर रहना पडता था, वहीं अब इंटरनेट के जरिये जब चाहे मिनटों में अपने संदेश, राखी व तोहफे कुछ भी भेज सकते हैं। वेब कैमरा लगा कर जब चाहे चलते-फिरते जीते-जागते भाई-बहन को आमने-सामने देख सकते हैं। ऐसा लगता ही नहीं कि उनके परिवार के लोग समुद्र पार बैठे हैं। जब जी चाहा जी भर देख लिया और मन भर बातें कर लीं। लेकिन आज समय के साथ रिश्तों के मायने भी बदले हैं। आज भाई ही नहीं बहन भी अपने कर्तव्यों को लेकर उतनी ही सजग है। आज वह पहले की तरह लाचार और कमजोर नहीं कि हर समय अपने भाई को अपनी रक्षा के लिए बुलाए।
बदली भूमिका
पहले जहां सुरक्षा का वादा भाइयों का ही होता था, वहीं आज बहन भी उतनी ही दृढता से भाई का साथ देने के लिए तैयार रहती है। आज की बहन पहले की तरह लाचार और बेबस नहीं। वह पढी-लिखी और सक्षम है। रिश्तों की बखूभी समझ उसे है, कानून और अधिकारों के प्रति वह पूरी तरह सजग है। वह इतनी परिपक्व है कि उसे जरूरत नहीं तो वह उदारता से अपने भाइयों के लिए सब अधिकार स्वेच्छा से छोड देती है।

सपनो की उडान

कुछ लोग कहते हैं,तुम सफल नही हो सकते या तुम नही कर सकते । इसलिए उसे करके दिखा देना ही जिंदगी की सबसे बडी कामयाबी है ।

इक नयी किरन फूटेगी
इक नया सवेरा जागेगा ।
धरती पे खुलेगा आसमां
इक रोज अंधेरा पिघलेगा ।
सन्नाटा जिससे टूटेगा
संसार ये जिससे गूजेगा ।
वह सुबह हमी से होगी
इक दिन सारी दुनिया की पहचान बनेगे ।
हर महफिल की शान बनेगे
धरकते दिलों के जज्बात बनेगे ।
खामोशी की बात बनेगे
वो सुबह हमारी ही होगी ।


विकास कुमार श्रेष्ठ
(हर पल जिंदगी)

आजाद भारत के सफर का घटनाक्रम

आजाद भारत के सफर का घटनाक्रम

सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा....जी हां, हमारा वतन, हमारा देश अब 61 वर्ष का हो चला है। देश के एक अरब से अधिक से नागरिक आजाद फिजाओं में सांस ले रहे हैं.. और हम दो हजार बीस तक देश को विकसित राष्ट्रों की कतार में खड़ा करने का सपना देश रहे हैं। ये सपना सच होगा और आने वाली नस्लें यह कह सकेंगीं कि हमें विरासत में आजाद हिन्दुस्तान मिला है। अगर इस शस्य-श्यामला भूमि की उपलब्धियों को खंगाला जाए तो हमने कई स्वर्णिम उपलब्धियां हासिल की हैं। साथ ही, काफी कुछ ऐसा रहा है जिसका दर्द हमें आज तक सालता है।

पिछले 61 सालों पर नजर दौड़ायें तो ऐसा नहीं है कि हमने सिर्फ कामयाबियां ही हासिल की हैं...हमने कुछ गवाया भी है।

हमारी कहानी शुरू होती है 15 अगस्त 1947 से जब देश आजाद हुआ लेकिन आजादी की कीमत हमें देश के विभाजन की कीमत से चुकानी पड़ी. साथ ही, पंजाब और बंगाल में भीषण दंगे हुए। अभी हम संभल ही रहे थे कि 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तानी कबाइलियों ने देश पर हमला किया। हमने मुंहतोड़ जवाब दिया। 26 अक्टूबर को महाराजा हरि सिंह ने कश्मीर को भारत का हिस्सा मान लिया और कश्मीर के विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए।
कश्मीर की ये खुशी मिली ही थी कि 30 जनवरी आते आते उस महात्मा की हत्या कर दी गई जिसके लिए कहा जाता है ...दे दी हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल। बापू को 30 जनवरी की शाम 5 बजकर 30 मिनट पर दिल्ली के बिड़ला हाउस में गोली मार दी गई। पूरा देश शोक में डूब गया।

1949 आते आते पाकिस्तान के साथ युद्ध विराम हुआ और 26 जनवरी1950 को भारत गणतंत्र बना... और इसी वर्ष हमने पहले गृहमंत्री और लौह पुरुष वल्लभ भाई पटेल को खो दिया...1951 की शुरुआत में देश से जमींदारी प्रथा का अंत हो गया, लेकिन 1956 में देश में भाषाई समस्या की वजह से गुजरात, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों का गठन हुआ।

10 अक्टूबर 1962 को देश को अब तक की सबसे बड़ी चुनौती के साथ जूझना पड़ा और चीन के साथ 42 दिन के युद्ध के बाद चीन ने ही एकतरफा युद्ध विराम की घोषणा की। इसके बाद, दो साल हंसी खुशी से गुजर गए, लेकिन, 27 मई 1964 को देश के एक युग का अंत हो गया और हमने देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निधन को झेला,,साथ ही, जय जवान जय किसान का नारा देने वाले महानायक लाल बहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार किया। इसके बाद शास्त्री जी की अगुवाई में देश ने 1965 की लड़ाई में पाकिस्तान को नाको चने चबबाए और संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप के बाद युद्ध विराम हुआ। 1966 में ताशकंद समझौता किया गया और ताशकंद में गुदड़ी के लाल शास्त्री जी का निधन हो गया। इसके बाद देश में प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश की बागडोर संभाली, उधर रीता फारिया देश की पहली विश्व सुंदरी बन गई। इसी साल भारत दुनिया का सबसे ज्यादा दूध उत्पादन करने वाला देश बन गया। 1967 के आते आते देश में हरित क्रांति की शुरूआत हुई...1971 में देश ने पाकिस्तान के साथ तीसरा युद्ध लड़ा और पाकिस्तान के नब्बे हजार सैनिकों ने देश के वीरों सामने हथियार डाल दिए। 2 जुलाई 1972 को शिमला समझौता सम्पन्न हुआ...47 में आजाद हुआ बालक भारत अब जवान हो चला था और पच्चीस साल का कड़ियल जवान ने दुनिया को अपनी जवानी का एहसास कराया 18 मई 1974 को, जब देश ने पहला परमाणु विस्फोट किया...और यहीं से हम परमाणु शक्ति बन गए।

25 जून 1975 को देश ने आपातकाल का दंश झेला और एक हजार राजनैतिक विरोधियों को गिरफ्तार किया गया। 19 महीने के बाद 1977 में आपातकाल समाप्त हुआ और यहीं से भारतीय राजनीति ने करवट ली और कांग्रेस पहली बार लोकसभा चुनाव हारी...और जनता पार्टी के नेतृत्व में देश में पहली जनता सरकार का गठन हुआ। 1969 में जनता सरकार गिरी और देश में सातवें आम चुनाव हुए। कांग्रेस 1980 के आते आते कई गुटों में बंट गई। आम चुनाव में इंदिरा कांग्रेस की जीत हुई और इंदिरा गांधी दुबारा देश की प्रधानमंत्री बन गईं। इसी वक्त भारत ने पहला स्वनिर्मित उपग्रह एएसएलवी का सफल परीक्षण किया और 19 नवंबर 1982 को देश ने पहली बार रंगीन टेलीविजन पर एशियाई खेलों का सीधा प्रसारण देखा। 1983 के आते आते भारतीय क्रिकेट ने एक धमाका किया और भारत क्रिकेट का बादशाह बन बैठा। कपिलदेव निखंज की कप्तानी में देश ने लंदन के लॉर्डस में ये गौरव पाया।

31 अक्टूबर 1984 को देश ने भारी सदमा झेला जब हमें श्रीमती इंदिरा गांधी को बेवक्त गंवाना पड़ा। उनकी हत्या के बाद देश में दंगे भड़के और समाज की नब्ज भांपते हुए कांग्रेस ने राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनाया। 1986 के आते आते देश राममय हो गया और हर घर में रविवार की सुबह रामानंद सागर की रामायण देखी जाने लगी। 1989 में लोकसभा चुनाव में बोफोर्स तोपों के सौदे की दलाली का मुद्दा छाया रहा..और भारतीय राजनीति में नया परिवर्तन हुआ..कांग्रेस की हार के बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह देश के प्रधानमंत्री बने। इसी वर्ष कश्मीर में आतंकवाद तेजी से पनपा। इसके बाद 13 अगस्त 1990 के आते आते भारतीय समाज में मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने की अधिसूचना जारी की गई। आरक्षण के समर्थन और विरोध में देश भर में प्रदर्शन हुए। भाजपा की समर्थन वापसी से वीपी सिंह सरकार गिरी और सिर्फ चार महीने के लिए युवा तुर्क चंद्रशेखर देश के प्रधानमंत्री बने। 21 मई 1981 के लोकसभा चुनाव के प्रचार अभियान के दौरान देश ने युवा नेता राजीव गांधी को एक आत्मघाती हमले में खो दिया। इसी साल पीवी नरसिंह राव ने देश की बागडोर संभाली और देश में आर्थिक उदारीकरण का दौर शुरू हुआ। 1992 के आते आते देश का समाज दो हिस्सों में बंट गया और अयोध्या की बाबरी मस्जिद ढहा दी गई। 1993 को मुंबई ब्लास्ट हुए और सैंकड़ों लोग मारे गए। 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी 13 दिन के लिए प्रधानमंत्री बने और भाजपा की सरकार विश्वास मत हासिल करने में नाकाम रही। लेकिन, कांग्रेस के समर्थन से देश की गद्दी एचडी देवगौड़ा ने संभाली। 1998 के आम चुनावों में भाजपा की अगुवाई में अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री बने.... और 11 से 13 मई के बीच भारत ने 25 साल बाद दूसरा पोखरण परमाणु विस्फोट किया..और दुनिया को अपनी ताकत का लोहा मनवा दिया। 1999 में वाजपेयी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ लाहौर शांति घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए। इसी साल भारत ने मई महीने में कारगिल की चोटियों पर पाकिस्तान से चौथी लड़ाई लड़ी और दुश्मन को मार भगाया। वर्ष 2000 के आते आते देश की जनसंख्या ने एक अरब का आंकड़ा छू लिया। इसी साल देश में राज्यों की संख्या 28 हो गई...झारखंड, छत्तीसगढ़, उत्तरांचल जैसे नए राज्य बनाए गए।

26 जनवरी 2001 को देश ने गुजरात के भुज में भयंकर भूकंप झेला जिसमें तीस हजार लोग मारे गए। तेरह दिसंबर को देश में लोकतंत्र के मंदिर संसद पर आतंकवादी हमला झेला। इन सबके बीच देश ने हिन्दुस्तान को दुनिया की ताकत बनाने वाले मिसाइल मैन डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम को बारहवें राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित किया। इसके बाद देश ने कई जगहों पर आतंकवादी धमाकों का सामना करते हुए साल दो हजार तीन में आतंकवादियों के साथ सीमा पर युद्धविराम की एकतरफा घोषणा की। साल दो हजार चार के आते आते देश में कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकार ने सिंह इज किंग मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया। इसी साल सुनामी ने दक्षिण भारत में कहर बरपाया और हजारों लोग असमय ही काल के गाल में समा गए। 2005 के आते आते भारत में मुजफ्फराबाद और दिल्ली के बीच साठ सालों में पहली बार सीधी बस सेवा शुरू की गई। 29 अक्टूबर को दिल्ली में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों में बासठ लोग मारे गए। 2006 का सूरज देश में ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना लेकर आया। इसी साल अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के साथ असैनिक परमाणु करार पर सहमति बन गई। 2007 के अप्रैल में भारत ने पहला व्यावसायिक अंतरिक्ष यान प्रक्षेपित किया जो अपने साथ इटली के एक उपग्रह को लेकर गया। 24 सितंबर को महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी में देश ने ट्वेंटी-ट्वेंटी का पहला विश्व कप अपने नाम किया। 61 सालों की सबसे बड़ी उपलब्धि भी इसी साल मिली जब देश ने आर्थिक दुनिया में क्रांति करते हुए नौ दशमलव चार फीसदी की विकास दर हासिल की। जुलाई में देश ने प्रतिभा देवी सिह पाटिल को पहली महिला राष्ट्रपति बनाया और 2008 में देश ने आजादी के बाद 61 सालो का सूखा खत्म करते हुए ओलंपिक में पहला स्वर्ण पदक जीता, जिसका श्रेय अभिनव बिद्रा को जाता है। देश के सपूत ने दस मीटर रायफल स्पर्धा में देश को ओलपिक खेलो में पहली व्यक्तिगत सफलता हासिल की.........

61 साल का भारत आजादी के पथ पर आगे बढ़ रहा है। खुशी, गम और खट्टी मीठी यादों के बीच सुख भी हमारा है और दुख भी. जरूरत है तो बस इस विरासत को संभालने और अगली पीढ़ी तक पहुंचाने की।
...कीजिये थोड़ा सा इंतजार....