Friday, September 10, 2010

सोनिया गांधी ने रचा इतिहास

कांग्रेस के 125 वर्षों के इतिहास में सोनिया गांधी ने नया इतिहास रचा है। उन्होंने चौथी बार औपचारिक रूप से अध्यक्ष पद की कमान संभाली है। रायबरेली से सांसद चुनी जाती रही सोनिया ने आधिकारिक रूप से 1998 में पहली बार अध्यक्ष की कुर्सी संभाली थी। वह नेहरू गांधी परिवार की पांचवीं और विदेशी मूल की आठवीं शख्सियत हैं जिन्होंने अध्यक्ष पद संभाला है। चौथी बार अध्यक्ष पद संभालने के बाद सोनिया गांधी ने सबका शुक्रिया अदा करते हुए कहा की देशभर के कांग्रेसजनों ने सर्वसम्मति से एक बार फिर निर्विरोध अध्यक्ष चुना है, इसके लिए मैं उनकी आभारी हूं। कांग्रेस पद देश के प्रति जिम्मेदारी भरा पद है जो देश और समाज के हर वर्ग को अपने साथ जोड़ने का काम करती है। यह हमारा सौभाग्य है कि हमें चौथी बार कांग्रेस अध्यक्ष पद संभालने का मौका मिला है, जिसपर हम खड़ा उतड़ने का प्रयास करेगें।

सोनिया गांधी का लगातार चौथी बार कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष बनना कोई बड़ी राजनीतिक घटना नहीं है। फिर भी इसका अपना महत्व है। कांग्रेस देश का सबसे पुराना और सबसे बड़ा राजनीतिक दल है। एक समय था, जब देश में सोनिया विरोध की हवा थी। कांग्रेस-विरोध का भी समय इस देश ने देखा है। दोनों ने विरोधों व विवादों को झेला और चुनौतियों का सामना करते हुए आज देश के सामने दोनों - कांग्रेस और सोनिया गांधी लगभग निर्विवाद रूप से अव्वल दर्जे की पार्टी और लोकप्रिय नेता के रूप में खड़े हैं।

कांग्रेस विरोधी भाजपा ने तो एक लोकसभा चुनाव सिर्फ सोनिया के विदेशी मूल को मुद्दा बनाकर लड़ा था। शरद पवार उसी के चलते कांग्रेस से अलग हो गए थे और अपना नया दल बना लिया था। बाद के चुनावों में भाजपा और पवार की नई पार्टी दोनों के ही हालात बिगड़ते गए और सोनिया गांधी का कद बढ़ता चला गया। वे विदेशी मूल की हैं, उन्हें हिंदी बोलना-लिखना नहीं आता, वे राजनीति नहीं समझतीं, नेहरू-गांधी परिवार की हैं, कांग्रेस में सिर्फ चमचागिरी चलती है.. इन सब बातों को पूरी तरह दरकिनार कर सोनिया आज पुन: कांग्रेस की सर्वमान्य नेता के रूप में देश के सामने खड़ी हैं।

सोनिया के ही अध्यक्ष काल में कई वर्षो बाद पिछले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने न सिर्फ सर्वाधिक सीटें जीतीं वरन् दूसरी बार पुन: केंद्र में सरकार भी बनाई। कांग्रेस और श्रीमती गांधी की सबसे तीखी आलोचक भाजपा कहीं की नहीं रही। गैर-कांग्रेसवाद के कट्टर समर्थक भी आज दबी आवाज में यह कहते हैं कि सोनिया गांधी ने कांग्रेस को संजीवनी दी है और आज तो वे कांग्रेस की पर्याय हैं।

भारतीय राजनीति में नेहरू-गांधी परिवार का अहम स्थान रहा है। उसी खानदान की सोनिया गांधी पहली सदस्य हैं जो चौथी बार पार्टी अध्यक्ष बनी हैं। आज नजर घुमाएं तो श्रीमती गांधी जितना बड़े कद वाला राजनेता दूर-दूर तक दिखलाई नहीं पड़ता। दूसरी राष्ट्रीय पार्टियों के अध्यक्ष चाहे वे नितिन गडकरी हों या मुलायम सिंह, शरद पवार हों या मायावती, जयललिता हों या ममता बनर्जी, सोनिया गांधी का मुकाबला नहीं कर सकते। नई पारी में सोनिया के लिए कई चुनौतियां रहेंगी। पहली प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को प्रभावी प्रधानमंत्री बनने देने की जबकि दूसरी देश में बढ़ती महंगाई पर काबू करने की। जनता समस्याओं से निजात पाने के लिए उन्हीं की ओर देखती है।
सोनिया का सफर
भारत की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के सबसे ऊंचे पद पर बैठी सोनिया गांधी का अर्से तक राजनीति से कोई वास्‍ता नहीं रहा। वक्त ने ऐसी करवट बदली की उन्हें राजनीति में आना ही पड़ा। 9 दिसंबर 1946 को जन्मी सोनिया ने कांग्रेस की सामान्य सदस्यता कोलकाता में पार्टी के अधिवेशन में 1997 में ली थी और उसके 62 दिन बाद ही 1998 में उन्‍हें पार्टी अध्यक्ष पद के लिए चुन लिया गया था। सोनिया गांधी ने 1999 में वह कर्नाटक के बेल्लारी और उत्तरप्रदेश के रायबरेली से लोकसभा चुनाव लड़ा और भाजपा की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज को हराया। 2004 और 2009 में सोनिया राय बरेली से सांसद चुनी गईं। अभी सोनिया गांधी रायबरेली से सांसद हैं।
2004 में जब सोनिया गांधी के नेतृत्व में आम चुनावों में कांग्रेस की जीत हुई और सोनिया गांधी को देश का अगला प्रधानमंत्री देखा जाने लगा तो विपक्ष ने इसका कड़ा विरोध किया। सुषमा स्वराज ने तो यह भी कह दिया था कि अगर सोनिया गांधी भारत की प्रधानमंत्री बनी तो वो अपना सिर मुंडवा लेंगी और जमीन पर सोएंगी। पर सुषमा स्वराज की ये ख़्वाहिश पूरी न हो सकी, उनके बाल भी बच गये और उनकी प्रतिष्ठा भी, क्योंकि सोनिया गांधी ने स्वयं हीं प्रधानमन्त्री बनना नामंजूर कर दिया
लेकिन सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद के लिए जब अर्थशास्त्री और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता डॉक्टर मनमोहन सिंह का नाम लिया तो पूरा देश हैरान रह गया। ये पहली बार नहीं हुआ था जब सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद छोड़ा हो। सोनिया गांधी ने अपने पति श्री राजीव गांधी की मौत के बाद भी कांग्रेस नेताओं द्वारा दिए गए प्रधानमंत्री बनने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। उस समय श्री पी.वी.नरसिंहा राव को देश का प्रधानमंत्री चुना गया था।
सोनिया गांधी ने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के सामने सशक्त विपक्ष होने की कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई। 1999 से 2004 तक अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान अक्सर मजाक में यह कहा जाता था कि अटल जी भाग्य के धनी है जो उन्हें सोनिया गांधी जैसा नेता विपक्ष मिला है. लेकिन वे उस वक्त यह अंदाज नहीं लगा पाये कि सोनिया गांधी अटल जी की पार्टी को सदा सदा के लिए विपक्ष बना देने की दिशा में काम कर रही हैं. इसमें कोई शक नहीं कि अटल जी को विपक्ष विहीन सदन मिला था फिर भी अटल जी ने कभी सोनिया गांधी को कमतर राजनीतिज्ञ के रूप में नहीं देखा। शायद यही कारण है कि कांग्रेस आज भी अटल बिहारी वाजपेयी को लेकर सौम्य रुख रखती है। अटल शासन के पांच सालों में सोनिया गांधी ने पार्टी को जमीन पर मजबूत करने की दिशा में कदम आगे बढ़ाया. सदन में सरकार से हाथापाई करने की बजाय चुपचाप वे लोगों के बीच जाती रहीं और पार्टी के काम को आगे बढ़ाती रहीं। दूसरी ओर यही वह दौर था जब उनके दो सबसे अधिक विश्वस्त सहयोगी माधवराव सिंधिया और राजेश पायलट अकाल मृत्यु के शिकार हो गये लेकिन सोनिया गांधी ने पार्टी को आंच नहीं आने दिया। परिणाम 2004 में सामने आया जब कांग्रेस ने यूपीए के तहत सत्ता हासिल कर ली। भाजपा लाख कोशिश करके भी भारत उदय नहीं कर पायी लेकिन सोनिया गांधी ने छह साल के अंदर देश में कांग्रेस उदय कर दिया.
2004 में सोनिया गांधी की परम इच्छा खुद प्रधानमंत्री बनने की थी. इसके लिए उन्होंने कोशिश भी किया लेकिन जल्द ही उन्हें समझ में आ गया कि अगर वे चाहेंगी तो उन्हें प्रधानमंत्री बनने से कोई रोक नहीं सकता लेकिन पार्टी का अस्तित्व शायद हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा. सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा इतना मुखर था कि कांग्रेस सदा-सदा के लिए समाप्त हो जाती। सोनिया गांधी ने यह भांप लिया और अपना इच्छा को कभी जाहिर नहीं किया, बजाय सत्ता के शीर्ष पर बैठने के उन्होंने सत्ता की चाभी अपने पास रख ली। उन्होंने देश में पहली बार एक ठप्पा प्रधानमंत्री नियुक्त करवाया जिसके अपने जीवन में इससे बड़ी पदवी कुछ हो नहीं सकती थी। उस वक्त अगर मनमोहन सिंह की बजाय प्रणव मुखर्जी या फिर किसी और का नाम सोनिया गांधी सामने रखती तो जल्द ही उस नेता की राजनीतिक महत्वाकांक्षा से लड़ना पड़ता। मनमोहन सिंह के साथ ऐसी कोई समस्या नहीं थी। पिछले कांग्रेस शासन में प्रधानमंत्री भले ही मनमोहन सिंह रहे हों लेकिन सारी राजनीतिक शक्तियां सोनिया गांधी के पास ही निहित थीं। देश के सभी मंत्रालयों पर आदेश भले ही प्रधानमंत्री कार्यालय का चलता हो लेकिन आदेश की वह प्रति तैयार होती थी यूपीए चेयरपर्सन के दफ्तर या घर से। पूरे पांच साल देश में जहां सबसे पहले प्रधानमंत्री को पहुंचना चाहिए वहां सोनिया गांधी को पहुंचाया गया और कांग्रेस ने यह साबित किया कि दरबार के बाहर किसी का कोई अस्तित्व नहीं,खुद प्रधानमंत्री का भी नहीं।
सोनिया गांधी का कमाल यह है कि वे हर योजना की सूत्रधार होती हैं लेकिन योजनाकार के रूप में उनका कहीं नाम नहीं होता है। वे राजनीति में गुप्तचर विद्या का भरपूर प्रयोग करती हैं लेकिन कोई उनके व्यक्तित्व को संदिग्ध नहीं कह सकता। वे जीत के बाद जश्न मनाने की बजाय बड़ी जीत की तैयारी में जुट जाती हैं। सोनिया गांधी और उनका दरबार अगले बीस साल के लिए देश में कांग्रेस को स्थापित करने की दिशा में काम कर रहे हैं। फिलहाल कलह से कमजोर होती भाजपा के कारण वे लोग इसमें सफल होते भी दिखाई दे रहे हैं।
2009 के चुनाव में सोनिया गांधी एक अनिश्चय के साथ उतरी थीं,और कांग्रेस को जीत दिलाने में कामयाब रही । जाहिर था इतनी बड़ी जीत की उम्मीद उन्हें भी नहीं थी क्योंकि परिणाम आने से एक दिन पहले कांग्रेस के रणनीतिकार अमर सिंह से भी हाथ मिलाने की बात करने लगे थे। लेकिन परिणाम आया तो सब कुछ उलट गया. कांग्रेस पहले से मजबूत होकर उभरी थी और सोनिया गांधी राहुल को भी स्थापित करने में सफल हो गयी थीं। राजनीति के कुल जमा 12 वर्षों में वे राजमाता के परम पद पर आसीन हैं और निकट भविष्य में उस पद को कोई खतरा भी नजर नहीं आता है. लेकिन इस बार सोनिया गांधी ने न तो यूपीए चेयरपर्सन के नाते अपने आपको स्थापित करने की कोशिश की और न ही मनमोहन सिंह के आगे आगे चलती दिखाई दे रही हैं। सोनिया गांधी एक बार फिर नयी योजना पर काम करती दिखाई दे रही हैं।
ऐसा लगता है कि सोनिया गांधी अगले बीस सालों के लिए कांग्रेस को सत्ता में स्थापित करने की दिशा में काम कर रही हैं. निश्चित रूप से इसके लिए वे हर तरह के प्रयास कर रही हैं। यह सोनिया गांधी की ही राजनीति है जो बताती है कि सफल होने के बाद शांत होकर मत बैठो, जश्न मत मनाओ. उससे बड़ी सफलता के लिए तैयारी करो. केन्द्र में सत्ता वापस आने के बाद अब कांग्रेस बीस साला परियोजना पर काम करती दिखाई दे रही है। खस्ताहाल होती भाजपा उसके इस परियोजना के सफल होने की पूरी गारंटी भी दे रही है। इसलिए 2009 के चुनाव के बाद सोनिया गांधी सत्ता प्रतिष्ठान को नियंत्रित करने की बजाय लोक अधिष्ठान को मजबूत करने में लगी हैं। यह काम वे अपने लिए नहीं कर रही हैं, इसका सीधा फायदा कांग्रेस और उनके बेटे राहुल को होगा। सोनिया गांधी ऐसी ही योग्य राजनीतिज्ञ हैं जो सत्ता संघर्ष में अपने हर हथियार का इस्तेमाल करती है. वे एक से एक लाजवाब योजनाएं बनाती हैं, उसे लागू करवाती हैं लेकिन जब जनता के सामने आती हैं तो भूले से भी यह अहसास नहीं होता कि यह महिला ऐसी गजब की योजनाकार भी हो सकती है। जनता के सामने वे एक आदर्श गृहणी और सीधी सरल सुसंस्कृत नारी ही नजर आती है। यही सोनिया गांधी का कमाल है और यही उनकी विलक्षण योग्यता जिसके बदौलत एकबार फिर कांग्रेस की कमान संभालती नजर आएंगी। जो कठिनाई और चुनौतियों से भरा होगा।

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