Monday, August 2, 2010

अपने ही अपनों के दुश्मन

अपने ही अपनों के दुश्मन

कश्मीर घाटी में लगातार बढ़ रहे हिंसा ने राज्य एंव केंद्र सरकार को सोचने पर मजबूर कर दिया है। जिससे दोनों सरकारों के बीच आपसी दुरियां बढ़ने लगी है । धरती का जन्‍नत कहा जाने वाला कश्‍मीर एक बार फिर सुलग रहा है। जिसका शिकार खासकर सोपोर और उसके आसपास के इलाके हैं। सच तो यह है की कश्मीर घाटी की समस्याएं टलती नहीं दिख रही है बल्कि और खतरनाक हो गयी है। कश्मीर राज्‍य के उत्‍तरी हिस्‍से से शुरू हुआ हिंसा का दौर अब धीरे-धीरे दक्षिणी हिस्‍सों में भी अपना असर दिखाने लगा है। हिंसा की ताजा घटना दक्षिण कश्‍मीर के पांपोर में हुई है, जो आग की तरह फैलती जा रही है। इतना ही नहीं उमर अब्‍दुल्‍ला सरकार के लिए स्थिति पर काबू पाना मुश्किल होता दिख रहा है। कश्मीर में जिस तरह का माहौल बन रहा है, उससे राज्‍य और केंद्र सरकार के बीच टकराव की संभावना बढ़ती जा रही है।
एक नजर कश्मीर के हलातों पर डाले तो पता चलता है कि अब तक करीब 30 लोग मारे गए हैं, जिनमें से ज्यादातर किशोर और नौजवान हैं। कश्मीर के हलातों पर घड़ियालु आंसू बहाने वाले कोई और नहीं बल्कि कुछ अलगाववादी तत्व और पाकिस्तान में बैठे आका हैं। जो लोगों की भावनाओं से खेलते हैं, रणनीति के तहत औरतों और किशोरों को प्रदर्शन के लिए गुमराह करते हैं, इतना ही नहीं मौत का राजनीति लाभ लेना चाहते हैं। इसे क्या कहेगें जो अपने चंद फायदों के लिए अपनों का ही खून बहाते हैं और दोष राज्य सरकार के अनुभवहीनता और कार्यकुशलता पर मढ़ते हैं। सच तो यह है कि हम सभी को जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्बदुल्ला की निष्ठा और गंभीरता पर कोई शक नहीं है पर उनकी कार्यकुशलता निश्चित रूप से संदेह के घेरे में आ गई है।
गौरतलब है कि सैय्यद अली शाह गिलानी और मीरवाईज उमर फारुक ने शांति की अपीलों को अनसुना कर लोगों को सड़कों पर उतरने के लिए भड़का रहे हैं। जिससे माहौल बिगड़ता जा रहा है। आम लोग अर्धसैनिक बलों के खिलाफ सड़कों पर उतर रहे हैं और इतना ही नहीं कर्फ्यू के बावजूद लोग प्रदर्शनों में भाग ले रहे हैं। सच तो यह हे कि राज्‍य के कई हिस्‍सों में एसएमएस सेवा बंद कर दी गई है जिससे लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। पर सवाल यह है कश्मीर में ऐसी नौबत क्यों आयी है, कश्‍मीर घाटी के लोग एकाएक सड़कों पर क्यों उतर रहे हैं ? इतना ही नहीं घाटी फिर क्यों सुलग रही है ? राज्‍य के अलगाववादी तत्‍व एक बार फिर जनभावनाएं भड़काकर अपने गर्हित उद्देश्‍यों को क्यों पूरा करने में जुटे हुए हैं ? दरअसल इस सारे मामले की जड़ में कश्‍मीर में अर्धसैनिक बलों की तैनाती है, जिसे लेकर राज्‍य के मुख्‍यमंत्री उमर अब्‍दुल्‍ला एवं राज्‍य के अलगाववादी संगठन लगातार विरोध करते आ रहे हैं। इतना ही नहीं इसके अलावा यह लोग सशस्‍त्र बल विशेषाधिकार कानून (एएफएसपीए) को वापस लेने या इसमें निहित कुछ अधिकारों को कम करने की मांग कर रहे हैं। अलगाववादियों का आरोप है कि इस कानून से राज्‍य में अर्धसैनिक बलों को अपनी मनमानी करने और मानवाधिकारों का खुला उल्‍लंघन करने का मौका मिलता है। साथ ही वह सेना पर फर्जी मुठभेड़ का भी आरोप लगाते हैं। खुद मुख्‍यमंत्री उमर अब्‍दुल्‍ला इन मामलों को लेकर केंद्र सरकार से अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं।
देखा जाए तो हुर्रियत के गिलानी धड़े ने राज्‍य में आंदोलन चलाकर अपनी राजनीति रोटियां सेंकने में लगे हैं। यह अलग बात है कि हुर्रियत अपनी विभाजन के बाद उतनी प्रासंगिक नहीं रह गई है जितनी पहले थी पर कहीं ना कहीं सुलग रही कश्मीर घाटी में घी डालने का काम कर रही है। जम्‍मू कश्‍मीर के कानून मंत्री अली मोहम्मद सागर का कहना है कि राज्य सरकार चरमपंथियों और अलगाववादियों के राजनीतिक नेतृत्व के ख़िलाफ़ लड़ रही है. लेकिन हम अपने ही लोगों के ख़िलाफ़ नहीं लड़ सकते जिन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर चुनाव में हिस्सा लिया।

देखा जाए तो इस मामले में इतनी आग इसलिए लगी है कि सीआरपीएफ के जवानों द्वारा की गई फायरिंग में कुछ युवाओं की मौत शामिल है। आजादी के बाद से लगातार संवेदनशील बने रहने वाले इस राज्‍य में अलगाववादी ऐसा कोई अवसर अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहते है जिससे उन्‍हें भारत सरकार को कठघरे में खड़ा करने और लोगों की भावनाओं को भड़काने का मौका मिले।
केंद्र सरकार कश्मीर घाटी में बढ़ रही हिंसा को देखते हुए विशेषाधिकार को मानवीय बनाने पर विचार कर रही है। यहां तक की प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी आश्वासन दे चुके है। प्रधानमंत्री श्रीनगर यात्रा के दौरान सुरक्षा बलों को मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं करने का निर्देश भी दिया था। पर यह सब सीर्फ आश्वासन बन कर रह गया है।
देखा जाए तो भारतीय सेना इस कानून को हटाए जाने अथवा इसे हल्‍का करने की किसी भी मंशा का विरोध करती रही है। इतना ही नहीं सेना प्रमुख वीके सिंह का कहना हैं कि जो लोग सशस्‍त्र बल विशेषाधिकार कानून को वापस लेने अथवा उसे हल्‍का करने की मांग कर रहे हैं, वह संकीर्ण राजनीतिक लाभ के लिए ऐसा कर रहे हैं, पर ऐसा करने से सेना का संचालन गंभीर रूप से प्रभावित होगा।
कश्मीर में हिंसा भड़काने में पाकिस्तानी सूत्रधार हों या अलगाववादी तत्व, पर उस पर अंकुश लगाना शासन का मुख्य काम है। पर अब जो हालात बन गए हैं उनमें अकेले उमर से संभव नही लगता। इसलिए जरूरी है कि राज्य के सभी पक्ष और केंद्र भी इस समस्या को प्राथमिकता बनाकर हिंसा रोकने और माहौल सुधारने का प्रयास करें, जिससे एक बार फिर कश्मीर घाटी में शांति बहाल हो सके।

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