Monday, August 2, 2010

कॉमनवेल्थ गेम को लेकर कितनी तैयार है दिल्ली

कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन में अब दो महीने से कुछ ज़्यादा का वक्त ही रह गया है। हम जैसे-तैसे तैयारियों को अंतिम रूप देने में लगे हुए हैं। लेकिन ऐसे कई सवाल हैं जिसका जबाव देना मुश्किल है। क्या हम इन खेलों का सफल आयोजन कर पाएंगे ? क्या इन खेलों से देश में खेल और खिलाड़ीयों का कोई भला हो सकेगा, सोचना लाजमी है । भारत ने इन खेलों की मेजबानी के वक्त लगाई गई बोली में यह कहा था कि अगर ये खेल भारत में होते हैं तो देश में युवाओं को खेलों की तरफ प्रेरित करने में मदद मिलेगी।
अब सवाल यह उठता है कि हजारों करोड़ रुपये खर्चकर हमने तामझाम तो तैयार कर लिया है, लेकिन क्या कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन से सिर्फ दिल्ली चमकेगी और आयोजन से जुड़ी कंपनियों, ठेकेदारों को फायदा पहुंचाकर यह निपट जाएगी। या फिर, वाकई 14 अक्टूबर को हम पदक तालिका में कहीं ‘नज़र’ आएंगे। इन सवालों में ही कॉमनवेल्थ खेलों की कामयाबी और नाकामी के जवाब छुपे हुए हैं। कॉमनवेल्थ गेम्स भारत में पहली बार और एशिया में दूसरी बार (1998 में मलेशिया की राजधानी कुआलालंपुर में ये खेल हो चुके हैं) हो रहे हैं। 1951 और 1982 में एशियाई खेलों के आयोजन के बाद हम पहली बार इतने बड़े पैमाने पर मल्टी स्पोर्ट्स टूर्नामेंट को आयोजित करने जा रहे हैं। 3 अक्टूबर से 14 अक्टूबर तक देश की राजधानी नई दिल्ली में होने जा रहे इन खेलों की तैयारी पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है।
कॉमनवेल्थ गेम्स की एक झलक
कॉमनवेल्‍थ खेल करीब 80 साल पुराना आयोजन है। इसमें उन देशों के खिलाड़ी भाग लेते हैं, जो कभी न कभी ब्रिटिश राज के नियंत्रण में रहे हैं। फिलहाल 71 विभिन्न देशों की टीमें इसमें भाग ले रही हैं। यह पूरा आयोजन कॉमनवेल्थ गेम्स फेडरेशन (सीजीएफ) की निगरानी में होता है।
कॉमनवेल्‍थ खेलों का आयोजन पहली बार 1930 में हुआ था। केवल 6 देशों (आस्ट्रेलिया, कनाडा, यूके, न्यूजीलैंड, स्कॉटलैंड और वेल्स) की टीमें हैं, जिन्होंने अब तक के सभी कॉमनवेल्थ खेलों में हिस्सा लिया है।




1930 में हुए खेलों का नाम ब्रिटिश एंपायर गेम्स था। ये खेल कनाडा के हैमिल्टन में आयोजित किए गए थे। 1954 में इसका नाम बदल कर ब्रिटिश एंपायर एंड कॉमनवेल्थ गेम्स रखा गया और 1978 से ये खेल कॉमनवेल्थ खेलों के नाम से विख्यात हो गया।खेलों की शुरुआत और समाप्ति के अवसर पर होने वाली परेड में सभी देश अंग्रेजी अल्‍फाबेट के आधार पर स्थान लेते हैं। लेकिन पहले नंबर पर पिछले साल के खेलों का आयोजक देश होता है और अंतिम नंबर पर खेलों का आयोजन करने वाला वर्तमान देश होता है। पुरस्कार दिए जाने वाले मंच पर तीन झंडे लहराते हैं। ये झंडे पिछले खेलों के मेजबान देश, मौजूदा मेजबान और और अगले आयोजक देश के झंडे होते हैं। आम तौर पर ब्रिटेन की रानी कॉमनवेल्थ खेलों के शुरुआती सत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती हैं, लेकिन इस बार दिल्ली में होने जा रहे खेलों में वे शामिल नहीं हो पाएगी। यह 40 साल में पहली बार होगा है कि ब्रिटेन की रानी क्वीन एलिजाबेथ दिल्ली में होने वाली कॉमनवेल्थ खेलों में शरीक नहीं हो पाएगी।
वादा तो किया, निभाना मुश्किल
2003 में कनाडा को पछाड़कर हमने कॉमनवेल्थ खेलों के आयोजन का अधिकार हासिल किया था। भारत ने बिडिंग जीतकर नया मोर्चा हासिल करने में कामयाब हो गया और 71 देशों के कॉमनवेल्थ परिवार की दोस्ती में शामिल हो गया। भारत ने उस समय वादा किया कि 2010 में कॉमनवेल्थ गेम्स का शानदार आयोजन होगा और तैयारियां वक्त पर पूरी होंगी।
1500 दिनों में कुछ नही, 60 दिनों से जगाई उम्मीद
2005 में जब हम इन खेलों से करीब पांच साल दूर थे, तब कॉमनवेल्थ खेल आयोजन समिति ने ‘1500 दिन दूर” नाम का कैंपेन बड़े तामझाम के साथ शुरू किया था। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने हरी झंडी दिखाई थी। लेकिन करीब 1440 दिन बीत जाने के बाद भी हमारी तैयारियां न सिर्फ अधूरी हैं बल्कि हमने जो काम भी किया है उनकी क्वॉलिटी पर सवाल उठ रहे हैं, तो कहीं स्टेडियम तैयार नहीं हैं, और जो तैयार हो गए हैं उनकी हालत बद से बदतर दिख रही है।




महंगाई में महंगा कॉमनवेल्थ
भारत में हो रहे 19 वें कॉमनवेल्थ खेल के इतिहास में अब तक का सबसे महंगा आयोजन है। इस खेल का मूल बजट करीब 7700 करोड़ रुपये हैं। इसमें एयरपोर्ट, सड़क और अन्य बुनियादों ढांचों के विकास का बजट शामिल नहीं किया गया है। 71 देशों के करीब 8000 एथलीटों व करीब एक लाख बाहरी दर्शकों का स्वागत, सुरक्षा व सुविधा के लिए दिल्ली में कुछ भी कायदे से तैयार नहीं है। आखिर बढ़ती महंगाई में कॉमनवेल्थ गेम के नाम से पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है।
तारीख पर तारीख के बावजूद अधर में तैयारी
शीला दीक्षित ने फिर कहा कि जिन भी स्टेडियमों में खेल होने हैं, उनको जोड़ने वाली सड़कों का निर्माण-मरम्मत का काम 30 अगस्त तक हो जाएगा। जबकि यह तारीख पिछले वर्ष के 30 अगस्त की होनी चाहिए थी। पिछले दो वर्षों में हर दूसरे महीने पर तारीख पर तारीख पड़ती जा रही है लेकिन काम पूरे नहीं हो पा रहे हैं। गौरतलब है कि 16 सितंबर से ही टीमें भारत पहुंचने लगेंगी।
खेलों के लिए निर्धारित स्थान
19 वें कॉमनवेल्थ गेम्स दिल्ली में होने हैं। दिल्ली के करीब 12 स्टेडियम इसके लिए तैयार किए जा रहे हैं। इनमें जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम, ध्यानचंद नेशनल हॉकी स्टेडियम, इंदिरा गांधी स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स, दिल्ली यूनिवर्सिटी स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स, त्यागराज स्टेडियम, सिरी फोर्ट स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स, डॉ. कर्णी सिंह शूटिंग रेंज, तालकटोरा इंडोर स्टेडियम, आरके खन्ना टेनिस कॉम्प्लेक्स, यमुना स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स और इंडिया गेट शामिल है। जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम कॉमनवेल्थ गेम्स का मुख्य स्टेडियम होगा। यहां पर उद्घाटन समारोह, समापन समारोह आयोजित किए जाएंगे।
कॉमनवेल्थ गेम्स की अधूरी तैयारी
कॉमनवेल्थ गेम्स, 2010 का मुख्य स्टेडियम जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम है। इन खेलों के ट्रैक ऐंड फील्ड इवेंट इसी स्टेडियम में होंगे। यहां करीब 75 हजार दर्शकों के बैठने की क्षमता है। इस स्टेडियम में मुख्य रूप से एथलेक्टिस, लॉन बॉल, वेटलिफ्टिंग जैसी स्पर्धाएं आयोजित की जाएंगी। इस स्टेडियम की मरम्मत हुई है और इसे नए सिरे से सजाया-संवारा गया है। नए सिरे से बने स्टेडियम का उद्घाटन 27 जुलाई को कर दिया गया।


लेकिन यह उद्घाटन तय समय से छह महीने बाद हुआ है। मूल योजना के मुताबिक इस स्टेडियम को जनवरी, 2010 में ही तैयार हो जाना था। यहां अब भी काम जारी है, जिसका सीधा मतलब है कि उद्घाटन करना भी महज रस्म अदायगी है क्योंकि अभी स्टेडियम में कई चीजों पर काम चल रहा है। स्टेडियम में निर्माण का काम 2008 में ही शुरू हो पाया था।
कॉमनवेल्थ गेम्स आयोजन समिति के दावों की पोल तालकटोरा स्टेडियम में ही खुल गई। यहां स्विमिंग और बॉक्सिंग जैसी प्रतिस्पर्धाएं आयोजित की जाएंगी। इसका उद्घाटन 18 जुलाई को किया गया था, लेकिन यह स्टेडियम बिल्कुल तैयार नहीं है। इस स्टेडियम की तब पोल खुल गई जब एक महिला तैराक को तैराकी का अभ्यास करते हुए चोट लग गई। इस स्टेडियम के पुनर्निर्माण में करीब 377 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। इस स्टेडियम में खिलाड़ियों के लिए बना ड्रेसिंग रूम अधूरा पड़ा हुआ है। यहां कई जगह तार टूटे पड़े हैं। स्टेडियम में जहां-तहां बिल्डिंग मैटिरियल बिखरा पड़ा है। और तो और स्टेडियम की सीढ़ियां भी अधूरी हैं। उन पर रेलिंग वगैरह नहीं लगी है। यहां टाइल्स उखड़ी पड़ी हुईं हैं। इसके अलावा कई जगह पर लोहे के रॉड निकले हुए हैं, जिनसे खिलाड़ियों को कभी भी चोट लग सकती है। स्टेडियम में अभी कई जगह छतों का काम जारी है। इस स्टेडियम को अक्टूबर, 2009 में ही तैयार हो जाना था। लेकिन अब तक सभी चीजें अधर में लटकी हुई है।
शहर भी नहीं है तैयार
बीएमसी के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा नगर निगम एमसीडी सीधे तौर पर राष्ट्रकुल खेल के प्रोजेक्ट से जुड़ा नहीं है। लेकिन उसके जिम्मे सड़कों के निर्माण से लेकर दशा-दिशा सुधारने, फुटपाथ, सेंट्रल वर्ज, लैंडस्कैपिंग, पार्किग व्यवस्था समेत साफ-सफाई से जुड़े काम है। 30 जून तक काम पूरा होना था और खेलों को 67 दिन बचे होने के बाद भी करीब चौथाई काम अधूरे हैं। सभी प्रोजेक्टो में से सिर्फ जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम के पास कुशक व सुनहरी नाले पर 700 बसों के लिए पार्किग व्यवस्था करने का काम एमसीडी ने तकरीबन पूरा कर लिया है।




सालों पहले जैसे ही राजधानी में राष्ट्रकुल आयोजित होने की घोषणा हुई तो कनाट प्लेस को सजाने संवारने के लिए प्लान तैयार करने की कवायद शुरू हो गई। तमाम जद्दोजहद के बाद मार्च 2007 में सीपी को खूबसूरत बनाने का काम एनडीएमसी ने शुरू कर दिया। इसे अगस्त, 2010 तक पूरा करने का दावा है। मगर अभी आउटर सर्किल के कई ब्लाकों में करीब एक चौथाई काम अधूरा परा है।
एनडीएमसी का दावा है कि खेलों से पूर्व देश का पहला भूमिगत पालिका बाजार भी बिल्कुल अलग लुक में नजर आएगा। बाजार में जाने के लिए सात गेटों में से कुछ पर एस्कलेटर के अलावा लिफ्ट भी लगाई जा रही है। इसके अलावा इसके पूरे फर्श को उखाड़कर ग्रेनाइट के पत्थर लगाने का काम शुरू हो चुका है। बाजार का सीवर सिस्टम बदला जाएगा। साथ ही वहां शौचालय आदि को भी नया रूप देने की तैयारी चल रही है। बाजार में लगे सभी पिलरों के ऊपर स्टील की कोटिंग होगी। पूरे बाजार के एयरकंडीशन सिस्टम को बदला जा रहा है। लेकिन इन तमाम योजनाओं में ज़्यादातर अधूरी हैं। किसी में चौथाई तो किसी में 30-40 फीसदी काम अधूरा है। सीएजी की रिपोर्ट नियंत्रक व महालेखा परीक्षक की रिपोर्टे बताती हैं कि इन परियोजनाओं के पिछड़ने के पीछे खराब योजना, देरी से शुरुआत, पैसे की कमी व मंजूरियों में देरी जैसे कई कारण रहे हैं। बात चाहे बिजली प्लांट लगाने की हो या फिर बसों, चिकित्सा सुविधाओं या होटलों की, कहीं भी कुछ भी वक्त व योजना के मुताबिक नहीं है। सीवीसी की नज़र कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारियों पर न सिर्फ देरी के आरोप लग रहे हैं बल्कि यह भी आरोप हैं कि इन खेलों के बहाने जबर्दस्त भ्रष्टाचार हुआ है। सेंट्रल विजिलेंस कमिश्नर का एक बयान आया है जिसमें कहा गया है कि उनका विभाग कई शिकायतों के बाद कॉमनवेल्थ गेम्स के सिलसिले में हो रही निर्माण कार्य पर नज़र रखे हुए है।
कॉमनवेल्थ गेम पर हो रही है सियासत
कॉमनवेल्थ गेम को लेकर राजनीति होना लाजमी है। भाजपा ने तो दिल्ली सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। दिल्ली सरकार के लिए यह शर्मनाक बात है कि केन्द्र और दिल्ली सरकार के मंत्री रोजाना स्टेडियमों में पहुंचकर पब्लिसिटी पाने के लिए अपनी तस्वीरें खिंचवाते रहते हैं जबकि उनकी पहली प्राथमिकता स्टेडियमों का काम समय से पूरा करने की होनी चाहिए। पर दिल्ली की मुख्यमंत्री शिला दीक्षित जनता के सामने वादा करती नजर आती हैं। इतना ही नही एमएस गिल तो बड़ी-बड़ी बातें करने में लगे हैं। देखना है कि बचे समय में सरकार कितना सफल होती है।

2 comments:

माधव( Madhav) said...

हाल बुरा है , इज्जत जायेंगी

shresth said...

thanks, for reply.