Wednesday, September 3, 2008

दहेज प्रथा

दहेज भारतीय समाज की ज्वलंत समस्या है । यह समस्या प्राचीन काल से आज तक चलती आ रही है । हजारों युवतियां हर वर्ष दहेज की बलि चढायी जाती है । प्राण नही लिये गये तो पल पल उनको त्रसित किया जाता है । गालियां दे-दे कर विष घोला जाता है । जी हां दोस्तो बात कर रहे हैं दहेज प्रथा की, जिसके आग मे जल रहा है समाज और इस नाटकीय खेल को देख रहा है समाज के वो लोग जो अपने को शिक्षित एंव जागरूक समझते हैं साथ मे तमाशबीन बनी हमारी सरकार । दोष सीर्फ उनका ही नही हमारा भी है जिसे जान कर भी अनजान बने बैढे है । सोच रहे होगें, जब एक बाप अपने बेटी की उज्जवल भविष्य का सपना देखता है तो यही सोचता है कि हमारी बेटी राज करेगी लेकिन वह सपना उसके लिए मौत बन जाती है । हर पिता अपनी बेटी के लिए अच्छा ही सोचता है लेकिन हकीकत कुछ और तभी तो लडकियों के साथ प्रताडना ही उनका सपना बन जाता है । विवाह का ये सुन्दर सुहावना स्वप्न, पल भर मे ही नारकीय वास्तविकता मे बदल जाता है । आमतौर पर शादियां परिवार के बुजुर्ग तय करते हैं, लेकिन वह रीति भी छुटती जा रही है, जिसका शिकार आज के आधुनिक बच्चे हो रहे है।

देश मे दहेज प्रथा को एक समाजिक कुरीति माना जाता है जिसका शिकार आज की महिलायें होती है । दहेज के कारण सुन्दर से सुन्दर और योग्य से योग्य पुत्री का पिता भयभीत और चिन्तित है तथा जिसके कारण हर भरतीय का सिर लज्जा और ग्लानि से झुक जाता है। दहेज के अभाव में पिता को मन मारकर अपनी लक्ष्मी सरीखी़ बेटी को किसी बूढ़े, रोगी, अपंग, और पहले से ही विवाहित तथा कई सन्तान के पिता के हाथ सौंप देना पड़ता है। मूक गाय की तरह बेटी को यह सामाजिक अनाचार चुपचाप सहन करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त केवल एक ही विकल्प उसके पास बच रहता है अपनी जीवन-लीला समाप्त कर दे। परिणाम ये हुआ कि अनेक निर्धन माता-पिता बेटी के जन्म लेते ही क्रूरता पू्र्वक बेटी का गला दबाकर हत्या करने लगे। समाज इस अन्याय को देखता रहा कारण साफ है अशिक्षा का होना । कहा जाता है कि शिक्षा के प्रति जागरूकता बढी, कानून सख्त हुए फिर भी दहेज प्रथा घटने के बजाए बढती जा रही है । समाज मे जब तक गरीबी रहेगी तब तक नारी समस्याओं के आंसू गिरते रहेगें ।

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